परंपरा के तहत ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ते हैं। 15 दिन तक उन्हें जड़ी-बूटियों के काढ़े का भोग लगाया जाता है। आसाढ़ कृष्ण अमावस्या को भगवाव जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं। फिर वह बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण को निकलते हैं। इसे ही रथयात्रा मेला के रूप में जाना जाता है।
इस परंपरा के निर्वहन के तहत ही भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमारी हालत में होने के कारण अपना गर्भगृह छोड़ चुके हैं। अब वो गर्भ गृह के बाहर विश्राम कर रहे हैं। लक्ष्मणबाग स्थित जगन्नाथ स्वामी मंदिर के पुजारी पंडित रामदास शास्त्री गर्भगृह के बाहर भगवान की सेवा में जुटे हैं।
मंदिर के पुजारी पंडित शास्त्री बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि भगवान 15 दिनों तक बीमार रहते हैं। बीमारी हालत में उनकी पूजा-अर्चना और देखभाल गर्भ गृह के बाहर ही होती है। अषाढ़ कृष्ण पक्ष की प्रदोष तिथि पर भगवान स्वस्थ्य होकर भक्तों का हाल-चाल लेने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। पुजारी पंडित शास्त्री बताते हैं कि वर्षो पुरानी इस परम्परा के तहत इस वर्ष भी भगवान का आसन गर्भ गृह के बाहर लगाया गया है और 15 दिन बाद यानी की 12 जुलाई को उनकी रथयात्रा परम्परा के मुताबिक शहर में निकाली जाएगी।
भगवान के बीमार होने को लेकर ऐसी किवदंतियां हैं कि भगवान जगन्नाथ स्वामी 15 दिनों तक बीमार थे और इस एक पखवारे के दौरान बड़े भैया बलभद्र एवं बहन सुभद्रा ने भी उनके साथ गर्भगृह छोड़कर बाहर समय व्यतीत किया था। तब से प्रतिवर्ष जगन्नाथ स्वामी मंदिर में स्थित भगवान की प्रतिमा के साथ ही बलभद्र एवं बहन सुभद्रा की भी प्रतिमा को मुख्य मंदिर से बाहर निकलाकर पुजारी अलग आसन पर स्थापित करते हैं और 15 दिनों तक उनकी देखभाल मंदिर के बाहर की जाती है। स्वस्थ होने के बाद भगवान नगर भ्रमण के लिए निकले थे। मान्यता है कि इस दौरान वह भक्तों का हाल-चाल लेते हैं। उसी के तहत लक्ष्मणबाग के भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर में यह परम्परा अब भी कायम है।
रीवा में भी जगन्नाथपुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथयात्रा निकाली जाती है। विशेष बग्गी में उनकी प्रतिमा को स्थापित किया जाता है। यात्रा के दौरान भक्तजन जगह-जगह, भगवान का दर्शन व पूजान-अर्चन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रथयात्रा में भगवान की पूजा-अर्चना करने से लोगों के दुख-दारिद्र व बीमारियां दूर होती हैं। इसके चलते इस रथयात्रा को लेकर रीवा में भी उत्साह रहता है और इसमें भक्तगण बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।