(बता दें कि सूर्य आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है, जो लगभग 137 मील (220 किलोमीटर) प्रति सेकंड की गति से लगभग 230 मिलियन वर्ष का समय लेता है। यह आकाशगंगा के माध्यम से लगभग 60° के कोण पर घूम रहा है।)
ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य की दशा उत्तरायण होने पर आप क्षितिज पर सूर्योदय होने के बिंदु को प्रतिदिन देखेंगे तो यह बिंदु धीरे धीरे उत्तर की और बढ़ता नजर आएगा। वहीं दिन में सूर्य के उच्चतम बिंदु को रोज देखेंगे तो पाएंगे कि उत्तरायण के दौरान वह बिंदु हर दिन उत्तर की ओर बढ़ रहा है।
उत्तरायण की दशा में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दिन लंबा और रात छोटी होती है। उत्तरायण का आरंभ मकर संक्रांति (प्रायः 14 जनवरी) से होता है और यह दशा 21 जून तक बनी रहती है। इसलिए इस दिन उत्तरायण उत्सव भी मनाया जाता है। इसके बाद दक्षिणायन (दक्षिण में गमन) प्रारंभ हो जाता है, जिसमें दिन छोटा और रात लंबी होने लगती है।
उत्तरायण का धार्मिक महत्व (Uttarayan Ka Mahatv)
धार्मिक ग्रंथों में उत्तरायण को देवताओं के दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के रूप में जाना जाता है। उत्तरायण में बसंत, शिशिर और गर्मी की ऋतु शामिल होती है। यह छह महीने चलता है। इस समय शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है। इस दिन सूर्य की पूजा, स्नान, दान और उत्सव मनाने का महत्व है। उत्तराखंड का उत्तरायणी मेला देश भर में प्रसिद्ध है।उत्तरायण के समय सूर्य की किरणें तेजोमय हो जाती हैं और इसका सेहत पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यह जीवन में शांति बढ़ाने वाली होती है। यह सकारात्मकता का प्रतीक है, जबकि दक्षिणायन नकारात्मकता का प्रतीक है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्तरायण उत्सव और त्योहार मनाने का समय है, जबकि दक्षिणायन व्रत साधना और ध्यान का समय है।