scriptराजीव कुमार के बाद कौन चलाएगा चुनाव आयोग, क्यों पहली बार बन रहा सस्पेंस? | Who will run the Election Commission after Rajiv Kumar, why is suspense being created for the first time? | Patrika News
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राजीव कुमार के बाद कौन चलाएगा चुनाव आयोग, क्यों पहली बार बन रहा सस्पेंस?

Election Commission: सीईसी का चयन जो कमेटी करेगी उसमें प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी), एक कैबिनेट मंत्री (जब कमेटी बनेगी तब नाम तय होगा) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (राहुल गांधी) होंगे।

नई दिल्लीJan 12, 2025 / 07:12 am

Ashib Khan

CEC Rajiv Kumar

CEC Rajiv Kumar

Election Commission: मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार अपने कार्यकाल का आखिरी चुनाव (दिल्ली विधानसभा का) करवा रहे हैं। इस साल अब अगला महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में बिहार में होना है। राजीव कुमार इससे काफी पहले, 18 फरवरी को ही रिटायर हो जाएंगे। पहली बार ऐसा हो रहा है कि अगला मुख्य चुनाव आयुक्त कौन होगा, इसे लेकर असमंजस है। अब तक होता ऐसा रहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त के बाद सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त उनकी जगह ले लिया करता था। नाम कि आधिकारिक घोषणा एक औपचारिकता भर मानी जाती थी। पर, इस बार नए नियम से चुनाव होगा। इसलिए कहा नहीं जा सकता कि राजीव कुमार के बाद सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार नए मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे या कोई ‘बाहरी’ यह कुर्सी संभालेगा?
मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें व कार्यकाल) अधिनियम 2023 के तहत नए सीईसी का चयन होगा। इस अधिनियम के धारा 6 और 7 के तहत कानून मंत्रालय की ओर से एक सर्च कमेटी बनेगी। इस कमेटी के मुखिया कानून मंत्री होंगे। उनके अलावा भारत सरकार में कम से कम सचिव स्तर के दो और अधिकारी इस कमेटी के सदस्य होंगे। यह कमेटी पाँच उम्मीदवारों के नाम तय करेगी। इन उम्मीदवारों के नाम पर चयन समिति विचार करेगी और इन्हीं पाँच में से एक को अंततः सीईसी चुना जाएगा। संभव है कि यह अंतिम नाम ज्ञानेश कुमार का भी हो।
सीईसी का चयन जो कमेटी करेगी उसमें प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी), एक कैबिनेट मंत्री (जब कमेटी बनेगी तब नाम तय होगा) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (राहुल गांधी) होंगे। चयन समिति के पास अधिकार है कि वह सर्च कमेटी की ओर से सुझाए गए सारे नाम खारिज कर किसी ‘बाहरी व्यक्ति’ की उम्मीदवारी पर भी विचार कर सकती है। शर्त बस इतनी है कि वह व्यक्ति मौजूदा या पूर्व सचिव स्तर का अधिकारी हो।
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का यह नया नियम लंबी अदालती लड़ाई के बाद आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बना है। मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सरकार इन नियुक्तियों के लिए कानून बनाए और जब तक कानून नहीं बनता, तब तक एक कमेटी के द्वारा ये नियुक्तियाँ की जाएँ। कोर्ट ने कहा था कि कमेटी में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायधीश शामिल रहें।
दिसंबर 2023 में मोदी सरकार ने इस संबंध में कानून बनाया। इसमें मुख्य न्यायाधीश को नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाने का प्रावधान रखा गया। सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस पर फरवरी में सुनवाई होगी।
संविधान निर्माता डॉ भीम राव आंबेडकर ने यह बात उठाया था कि चुनाव तंत्र को सरकार के प्रभाव से मुक्त रखा जाए। संविधान सभा के सदस्यों ने इस बात पर सहमति दी थी कि चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया तय करने का काम संसद पर छोड़ा जाए। लेकिन, इससे डॉ आंबेडकर की चिंता का निर्विवाद समाधान नहीं हो सका। चुनाव आयोग पर सरकार के प्रभाव और आयोग की स्वतंत्रता व निष्पक्षता को लेकर सवाल तब से अब तक उठते ही रहे हैं।
चुनाव आयुक्त या मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से जुड़ा है। पहले इनकी नियुक्ति पूरी तरह सरकार द्वारा होती थी तो यह सवाल उठाया जाता रहा था। नई व्यवस्था के बाद भी यह सवाल पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इसकी वजह है कि अभी भी चयन समिति में वर्चस्व सरकार का ही है। ऐसे में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर विपक्ष की ओर से उठाए जाने वाले सवाल आगे भी उठते रहेंगे।

अन्य देशों में क्या है प्रक्रिया

चुनाव आयोग के गठन की प्रक्रिया अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। अमेरिका में राष्ट्रपति के द्वारा इसका गठन होता है। इस पर सीनेट की मंजूरी लेनी होती है।
ग्रेट ब्रिटेन (यूके) में स्पीकर्स कमेटी (जिसमें सदन के सदस्य शामिल होते हैं) की निगरानी में चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियाँ होती हैं। नाम पर हाउस ऑफ कॉमन्स की मंजूरी लेनी होती है। इसके बाद शाही आदेश से इनकी नियुक्ति की जाती है।
कनाडा में भी हाउस ऑफ कॉमन्स के प्रस्ताव के जरिये नियुक्ति की जाती है, जबकि दक्षिण अफ्रीका में नियुक्ति तो राष्ट्रपति के जरिये होती है, लेकिन चयन प्रक्रिया में संवैधानिक कोर्ट के प्रमुख, मानवाधिकार अदालत के प्रतिनिधि, लैंगिक समानता आयोग के प्रतिनिधि और सरकारी वकील शामिल रहते हैं।

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