दूर दूर से आते है श्रद्धालु
यह अनोखा शिवलिग छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर गरियाबंद में घने जंगलों के बीच बसे ग्राम मरौदा में स्वयं स्थापित है। 12 ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस शिवलिंग का आकार लगातार हर साल बढ़ रहा है। यह घने जंगलों के बीच मरौदा गांव में स्थित है। सुरम्य वनों एवं पहाड़ियों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है। यहां पर देशभर के कौने—कौने से भगवान भोले के भक्त आते है।
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पौराणिक मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती-बाड़ी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घूमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) व शेर के दहाड़ने की आवाज आती थी। उसने यह बात ग्रामीणों को बताई। ग्रामवासियों ने भी शाम को वहीं आवाजें सुनी। सांड और शेर की तलाश की गई लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढऩे लगी। लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे।
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हर साल बढ़ रही है ऊंचाई व गोलाई
पारागांव के लोग बताते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है। यही स्थान आज भूतेश्वरनाथ, भकुर्रा महादेव के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी में हुकारने को भकुर्रा कहते हैं।
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शिवलिंग का पौराणिक महत्व
वर्ष 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक में उल्लेखित है। इसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान और विशाल शिवलिंग बताया गया है। यह जमीन से लगभग 55 फीट ऊंचा है। प्रसिद्ध धार्मिक लेखक बलराम सिंह यादव के ज्ञानानुसार संत सनसतन चैतन्य भूतेश्वरनाथ के बारे में लिखते हैं कि लगातार इनका आकर बढ़ता जा रहा है। वर्षों से नापजोख हो रही है। यह भी किवदंती है कि इनकी पूजा छुरा नरेश बिंद्रानवागढ़ के पूर्वजों द्वारा की जाती रही है।