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Geeta Updesh: गीता के इन 4 श्लोकों में छिपा है सुखी और सफल जीवन का राज

गीता में निहित श्लोक व्यक्ति को अपना जीवन सही ढंग से जीने के लिए उसका मार्गदशन करते हैं। ऐसे में यदि कोई इसके ज्ञान को अपने जीवन में अपना ले तो उसका जीवन सफल हो सकता है।

Jul 21, 2022 / 11:15 am

Tanya Paliwal

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Geeta Updesh: गीता के इन 4 श्लोकों में छिपा है सुखी और सफल जीवन का राज

गीता 18 अध्याय और 700 श्लोकों वाला एक ऐसा महापुराण है जो मनुष्य को उसके कर्मों का महत्व समझाती है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के सारथी बने भगवान श्री कृष्ण ने उसे जो उपदेश दिए थे उन्हीं को महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत गीता में संकलित किया। गीता में ज्ञानयोग, कर्म, राज और भक्तियोग का बड़ा सुंदर उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि भगवत गीता की कुछ बातों को समझने और उनका पालन अपने जीवन में कर लेने मात्र से व्यक्ति एक सफल जीवन जी सकता है। तो आइए जानते हैं उन 4 श्लोकों के बारे में जिनमें छिपा है सुखी और सफल जीवन का राज…

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थ- गीता के इस श्लोक से तात्पर्य यह है कि एक उत्तम पुरुष जितने भी श्रेष्ठ कार्य करता है उसकी तरह ही अन्य आम लोग आचरण करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जैसे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, उसे देख सम्पूर्ण मानव समाज उन्हीं बातों का पालन करने लगता है।

चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः।।
अर्थ- गीता के इस श्लोक द्वारा समझाया गया है कि चिंता करने से ही दुख का जन्म होता है, किसी दूसरे कारण से नहीं। इसलिए जो मनुष्य इस चिंता को छोड़ देता है वह सभी जगह सुखी, शांत रहता है और अवगुणों से मुक्त हो जाता है।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
अर्थ- इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि मनुष्य का अधिकार केवल उसके कर्म पर ही होता है, लेकिन आप कर्म के फल को नहीं जान सकते। इसलिए श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्म करते रहो फल की चिंता मत करो। साथ ही अकर्मण्य भी मत बनो।


यत्साङ्‍ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते।
एकं साङ्‍ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति।।
अर्थ- गीता के इस श्लोक से यह समझाया गया है कि सांख्ययोगियों द्वारा जिस ज्ञान की प्राप्ति की जाती है, वही ज्ञान कर्मयोगियों के द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। इसलिए जो व्यक्ति सांख्य और कर्म योग को एक समान देखता है, वही यथार्थ है।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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