धार्मिक मान्यताओें के अनुसार, 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र रोहिणी भी है। हर महीने ( rohini vrat days ) यह व्रत किया जाता है। यह व्रत उस दिन किया जाता है जब रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय के बाद प्रबल होता है। ऐसे में कल यानि 16 अप्रैल 2021,शुक्रवार के दिन रोहिणी व्रत है।
रोहिणी व्रत रोहिणी देवी से जुड़ा है। इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से पति की लंबी आयु लंबी होती है और स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। इस दिन जो महिला व्रत करती हैं उनसे ईर्ष्या, द्वेष जैसे भाव दूर ( benefits of rohini vrat ) हो जाते हैं। साथ ही उनके जीवन में धन, धान्य और सुखों में बढ़ोत्तरी भी होती है।
वहीं प्रत्येक वर्ष में बारह रोहिणी व्रत होते हैं। आमतौर पर रोहिणी व्रत ( Rohini Vrat Kab Hai) का पालन तीन, पांच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है। रोहिणी व्रत की उचित अवधि पांच वर्ष, पांच महीने है।
उद्यापन के द्वारा ही इस व्रत का समापन किया जाना चाहिए। जैन धर्म में मान्यता है कि इस व्रत को पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं। स्त्रियों के लिए यह व्रत अनिवार्य माना गया है, इस व्रत को कम से कम 5 महीने और अधिकतम 5 साल तक करना चाहिए।
माना जाता है कि इस व्रत को करने से आत्मा के विकारों को दूर किया जाता है। साथ ही ये कर्म बंध से भी छुटकारा दिलाता है, यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है और जैन समुदाय में सभी इस व्रत को जरूर करते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य के अंदर शुद्धता आती है और नेक कार्य करने को प्रेरित ( rohini vrat meaning ) होता है।
रोहिणी व्रत: पति की लंबी उम्र के लिए
रोहिणी व्रत खासतौर पर जैन धर्म की महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। यह व्रत वर्ष में 12 बार रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है। ऐसे में 16 अप्रैल 2021, शुक्रवार ( rohini vrat 2021 ) को भी रोहणी व्रत रहेगा।
माना जाता है कि यह व्रत सभी प्रकार के दुख और परेशानियों को दूर करता है। जैन समाज के लोगों के अनुसार इस व्रत में भगवान भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। इस व्रत को तीन, पांच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है।
रोहिणी व्रत उद्यापन
रोहिणी व्रत निश्चित समय के लिए किया जाता है, इसका निर्णय स्त्री स्वयं लेती है। मानी गई अवधि पूरी होने पर इसका उद्यापन कर दिया जाता है। इस व्रत के लिए 5वर्ष 5 माह का समय श्रेष्ठ होता है। उद्यापन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद गरीबों को खाना खिलाया जाता है और वासुपूज्य की पुजा की जाती है। उद्यापन के लिये इनके दर्शन किये जाते है। इस प्रकार पुराणों में रोहिणी व्रत को महत्वपूर्ण माना गया है। यह जैन एंव हिंदू धर्म नक्षत्र मान्यता समान होती है।
रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Puja Vidhi)
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत संकल्प लें। इसके बाद आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें।
: इस दौरान भगवान वासुपूज्य की अराधना की जाती है। उनकी पंचरत्न, ताम्र या स्वर्ण की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए।
वासुपूज्य स्वामी को जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को चम्पापुरी के इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। इनकी माता का नाम जया देवी और पिता का नाम राजा वसुपूज्य था। इनका शरीर लाल रंग का था।
: पूजा के बाद उन्हें फल-फूल, वस्त्र और नैवेद्य का भोग लगाना चाहिए।
: इस दिन अपने सामर्थ्यनुसार गरीबों को दान करना चाहिए। इसका महत्व बहुत ज्यादा होता है।
: मान्यता है कि इस व्रत का पालन 3, 5 या 7 वर्षों तक निश्चित रूप से करना चाहिए।
रोहणी व्रत की कथा :
कथा के अनुसार प्राचीनकाल में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का राजा था उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्ना हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्या का विवाह कैसे होगा। इसके चलते धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेन से उसका विवाह कर दिया। इसके बाद वह दुगंध से परेशान होकर एक ही मास में दुर्गंधा को छोड़कर चला गया।
इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए तो धनमित्र ने अपनी पुत्री दुर्गंधा के दुखों को दूर करने के लिए उपाय पूछा। इस पर उन्होंने बताया कि गिरनार पर्व के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी।
एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीडा के लिए चले तब मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर आहार की व्यवस्था करने को कहा।
राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कडवी तुम्बी का आहार दिया। इससे मुनिराज को अत्यंत परेशानी हुए और उन्होंने प्राण त्याग दिए। इस बात का पता जब राजा को चला तो उन्होंने रानी नगर से निकाल दिया।
इस पाप से रानी को शरीर में कोढ़ उत्पन्ना हो गया। दुख भोगने के बाद रानी का जन्म तुम्हारे घर पर हुआ। दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक रोहणी व्रत धारण किया। इससे उन्हें दुखों से मुक्ति मिली और अंत में मृत्यृ के बाद स्वर्ग में देवी हुई।
मासिक रोहणी व्रत अप्रैल 2021 से : Masik Rohni Vrat 2021 Dates –
16 अप्रैल, शुक्रवार रोहणी व्रत
13 मई, बृहस्पतिवार रोहणी व्रत
10 जून, बृहस्पतिवार रोहणी व्रत
07 जुलाई, बुधवार रोहणी व्रत
03 अगस्त, मंगलवार रोहणी व्रत
31 अगस्त, मंगलवार रोहणी व्रत
27 सितंबर, सोमवार रोहणी व्रत
24 अक्टूबर, रविवार रोहणी व्रत
20 नवंबर, शनिवार रोहणी व्रत
18 दिसंबर, शनिवार रोहणी व्रत