तब दुखी सुग्रीव को राम जी ने मदद करने का विश्वास दिलाया। अपने वचन के अनुसार भगवान राम ने बाली का वध करके सुग्रीव को फिर से किष्किंधा का राजा बना दिया। सुग्रीव को कई सालों बाद पत्नी और राज्य का सुख मिला। उस समय वर्षा ऋतु का आरंभ भी हो चुका था। वर्षा ऋतु समाप्त होने तक प्रभु राम और भ्राता लक्ष्मण दोनों ने एक पर्वत पर गुफा में निवास किया।
साथ ही राम जी इस बात के इंतजार में थे कि सुग्रीव आकर सीता की खोज में उनकी मदद करेंगे। लेकिन राज्य के सुख में डूबा हुआ सुग्रीव इस बात को भूल गया कि उसे भगवान राम के पास जाना है। कई दिन बीतने के बाद राम जी ने खुद लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजा।
तब लक्ष्मण जी ने सुग्रीव को अपना क्रोध प्रकट करते हुए इस बात का एहसास दिलाया कि वह सुख-सुविधाओं के मद में चूर होकर कितनी बड़ी भूल कर बैठा है। इस बात से शर्मिंदा कर उसने भगवान राम और लक्ष्मण जी से माफी मांगी। इसके बाद सीता जी की खोज शुरू कर दी।
रामचरितमानस का यह प्रसंग इस बात की सीख देता है कि कभी भी अपनी सफलता को अपने सर नहीं चढ़ने देना चाहिए, वरना व्यक्ति अपने जीवन के सही मार्ग से भटककर बड़े लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाता।