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पाप ग्रहों से हैं परेशान तो करें काल भैरव की उपासना, सांसारिक दुखों से मिल जाएगा छुटकारा

काल भैरव को तंत्र क्रियाओं के प्रमुख देवता के रूप में पूजा जाता है।

Nov 16, 2019 / 01:31 pm

Devendra Kashyap

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भोलेनाथ के रुद्र रुप कहे जाने वाले कालभैरव की अधिक पूजा होती है। काल भैरव को तंत्र क्रियाओं के प्रमुख देवता के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हो तो वे किसी माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी से पूजा प्रारंभ कर इस मंत्र ‘ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं’ का जप 40 दिनों तक करे तो उसका प्रभाव कम हो जाता है। ध्यान रखें कि इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला से ही करें।

रविवार और मंगलवार को पूजा फलदायिनी है

माना जाता है कि काल भैरव की आराधना से शत्रु मुक्ति, संकट और कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है। इसके अलावा इनकी पूजा करने से शनि का प्रकोप भी शांत हो जाता है। कहा जाता है कि रविवार और मंगलवार को काल भैरव की पूजा करना बहुत ही फलदायी होता है।

शीघ्र फल देने वाले हैं काल भैरव

शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में काल भैरव, हनुमान जी और काली मां की पूजा-उपासना करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए उनकी किस प्रकार पूजा करना चाहिए…

काल भैरव की पूजा रविवार के दिन करना अति शुभ माना गया है। इसके अलावा शनिवार के दिन भी काल भैरव की पूजा की जा सकती है।

काल भैरव का वाहन कुत्ता है। इसलिए शनिवार के दिन काले कुत्ते को गुलगुले बनाकर खिलाने से काल भैरव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, काल भैरव का जन्म कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। ऐसे में इस दिन भैरव की उपासना से जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
काल भैरव मंत्र साधना और उनकी पूजा-पाठ को रात्रि में ही संपन्न करने का विधान है।

काल भैरव मंत्र ‘ऊँ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:’ की जप की शुरुआत रविवार की रात करें। रविवार की रात्रि को एक समय और स्थान सुनिश्चित कर प्रतिदिन इस मंत्र का जप करने का दृढ़ संकल्प लेकर साधना शुरू करें।

कैसे करें उपासना

पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर काल भैरव की फोटो रखें। इसके बाद ईशान कोण में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ये सब करने के बाद सामने लाल आसन बिछाकर बैठ जाएं और हाथ में थोड़ा सा जल लेकर संकल्प लें ताथा मंत्र जप शुरू करें।

40 दिन तक लगातार इस साधना को करें। 40 दिनों तक आप जितने मंत्र जप किए हैं, उसके 10वां भाग से आहुति देकर हवन करें। माना जाता है कि इस मंत्र साधना से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर होने लगती है और साधक को सभी प्रकार के सांसारिक दुखों से छुटकारा मिल जाता है।

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