धार्मिक मान्यता के अनुसार देवशयनी यानि हरिशयनी एकादशी के दिन से चार माह के लिए देव सो जाते हैं। तभी से चातुर्मास का शुभारंभ माना जाता है, ऐसे में इस साल हरिशयनी एकादशी यानि आषाढ़ शुक्ल एकादशी 20 जुलाई 2021 को है।
पंडित एसके पांडे के अनुसार हरिशयनी एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से जहां कई शुभ कार्यों पर पाबंदी लग जाएगी वहीं इस दिन कुछ विशेष कार्य विशेष लाभ प्रदान करते हैं।
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माना जाता है कि इनमें वे कार्य भी हैं जो न केवल व्यक्ति को निरोगी रखने में मदद करते हैं, बल्कि इनसे व्यक्ति के संकट तक कट जाते हैं। हरिशयनी / देवशयनी एकादशी के कार्य और इसके लाभ…
हरिशयनी / देवशयनी एकादशी के विशेष कार्य : (मान्यता के अनुसार)
1. इस दौरान विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है और व्यक्ति निरोगी होता है।
2. इस दिन प्रभु हरि की विधिवत पूजा करने और उनकी कथा सुनने से सभी तरह के संकट कट जाते हैं।
3. इस दिन तुलसी और शालिग्राम की विधिवत रूप से पूजा और अर्चना करनी चाहिए।
4. देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
5. यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है और जीवन में खुशियों को भर देते हैं।
6. एकादशी के विधिवत व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
7. इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
8. इस व्रत को करने से शरीरिक दु:ख दर्द बंद हो जाते हैं और सेहत संबंधी लाभ मिलता है।
9. इस दिन देवशयनी की पौराणिक कथा का श्रवण करें।
ये न करें…
1. इस दिन चावल, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन आदि बिलकुल न खाएं।
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चातुर्मास मास के चार माह इस प्रकार हैं श्रावण (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल एकादशी तक), भाद्रपद (श्रावण शुक्ल एकादशी से भाद्रपद शुक्ल एकादशी तक), आश्विन (भाद्रपद शुक्ल एकादशी से आश्विन शुक्ल एकादशी तक)और कार्तिक (आश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी यानि देव प्रबोधिनी एकादशी तक)।
ऐसे में भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानि 20 जुलाई 2021 को 4 मास के लिए योगनिद्रा में चले जाएंगे हैं। देवशयनी एकादशी के 4 माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं।
दरअसल आषाढ़ शुक्ल एकादशी के बाद से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इस चातुर्मास के दौरान यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, ग्रहप्रवेश, यज्ञ आदि धर्म कर्म से जुड़े जितने भी शुभ कार्य होते हैं वे सब त्याज्य होते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री हरि के शयन को योगनिद्रा भी कहा जाता है।