वहीं इसके पश्चात भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन पुन: योग निद्रा से जागते हैं, जिसके साथ ही भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप व देवी तुलसी के विवाह की कथा है।
ऐसे में शालीग्राम को लेकर हर किसी के मन में तमाम तरह की जिज्ञासा होती है, इन्हीं सब बातों को देखते हुए हम आपको शालिग्राम शिला से जुड़ी कुछ खास जानकारी दे रहे हैं।
इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि जहां शालग्राम शिला रहती है वहां भगवान श्रीहरि व लक्ष्मीजी के साथ सभी तीर्थ निवास करते हैं हिमालय पर्वत के मध्यभाग में शालिग्राम-पर्वत (मुक्तिनाथ) है, यहां भगवान विष्णु के गण्डस्थल से गण्डकी नदी निकलती है, यहीं से निकलने वाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं।
दरअसल यहां मौजूद शिला में चक्र, वनमाला, गाय के खुर आदि का चिह्न होते हैं, जिनका निर्माण यहां के कीड़े अपने तीखे दांतों से करते हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु सर्वव्यापक होने पर भी शालग्राम शिला में साक्षात रूप से उसी तरह रहते हैं जैसे काठ में अग्नि गुप्त रूप से रहती है।
इसीलिए इनकी प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है और पूजा में भी आवाहन और विसर्जन नहीं किया जाता है। शालिग्राम शिला में भगवान की उपस्थिति का सबसे सुन्दर उदाहरण वृन्दावनधाम में श्रीराधारमणजी हैं जो शालिग्राम शिला से ही प्रकट हुए हैं।
इनकी कथा के अनुसार एक बार श्रीगोपालभट्टजी गण्डकी नदी में स्नान कर रहे थे, तो सूर्य को अर्घ्य देते समय एक अद्भुत शालिग्राम शिला उनकी अंजुली में आ गयी जिसे वे वृन्दावन लाकर पूजा-अर्चना करने लगे। एक दिन एक सेठ ने वृंदावन में भगवान के सभी विग्रहों के लिए सुन्दर वस्त्र-आभूषण बांटे।
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श्रीगोपालभट्टजी को भी वस्त्र-आभूषण मिले, परन्तु वे उन्हें शालग्राम को कैसे धारण कराते? श्रीगोपालभट्टजी ने मन में सोचा कि यदि मेरे आराध्य के भी हस्त और पाद अन्य विग्रहों की तरह होते तो मैं भी उन्हें सजाता । यह विचार करते हुए उन्हें सारी रात नींद नहीं आयी।
इसके बाद सुबह जब वे उठे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्योंकि उनके शालिग्राम द्वादश अंगुल के ललित त्रिभंगी दो भुजाओं वाले मुस्कराते हुए श्रीराधारमनजी बन गए थे।
तुलसी और शालिग्राम : तुलसी (वृन्दा) ने छलपूर्वक पातिव्रत-भंग करने के चलते भगवान श्रीहरि को शाप दिया और कहा कि आपका हृदय पाषाण के समान है। अत: अब मेरे शाप से आप पाषाणरूप होकर पृथ्वी पर रहें। भगवान विष्णु पतिव्रता तुलसी (वृन्दा) के शाप से शालिग्राम शिला बन गए।
जबकि वृन्दा भी तुलसी के रूप में परिवर्तित हो गयीं। ध्यान रहें शालिग्रामजी पर से केवल शयन कराते समय ही तुलसी हटाकर बगल में रख दी जाती है, इसके अलावा वे कभी तुलसी से अलग नहीं होते हैं। मान्यता है कि जो शालिग्राम से जो कोई भी तुलसीपत्र को हटाता है, अगले जन्म में वह पत्नी विहीन होता है।
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शालिग्राम शिलाओं के प्रकार:
सुख-समृद्धि और मोक्ष देने वाली विभिन्न प्रकार की शालग्राम शिलाएं, आकृति में विभिन्नता से अनेक प्रकार की होती हैं, जिस शिला में एक द्वारका चिह्न, चार चक्र और वनमाला हो व श्यामवर्ण का हो वह शिला ‘लक्ष्मीनारायण’ का रूप होती है। वहीं एक द्वार, चार चक्र व श्याम वर्ण की शिला ‘लक्ष्मीजनार्दन’ कहलाती है ।
जबकि दो द्वार, चार चक्र और गाय के खुर का चिह्न वाली शिला ‘राघवेन्द्र’ का रूप होती है। इसके अलावा जिस शिला में दो बहुत छोटे चक्र चिह्न व श्यामवर्ण की हो वह ‘दधिवामन’ कहलाती है। इसकी पूजा गृहस्थों के लिए अत्यन्त विशेष मानी गई है ।
अत्यन्त छोटे दो चक्र व वनमाला का चिह्न वाली शिला ‘श्रीधर’भगवान का रूप है। माना जाता है कि इसकी पूजा से गृहस्थ श्रीसम्पन्न हो जाते हैं। वहीं जो शिला मोटी, पूरी गोल व दो बहुत छोटे चक्र वाली हो, वह ‘दामोदर’ के नाम से जानी जाती है।
इसके अतिरिक्त वर्तुलाकार, दो चक्र, तरकस और बाण के चिह्न से सुशोभित शालिग्रामशिला ‘रणराम’ के नाम से जानी जाती है। वहीं भगवान ‘राजराजेश्वर’ का विग्रह वह शालिग्राम शिला मानी जाती है जिस पर सात चक्र, छत्र व तरकस मौजूद हो। माना जाता है कि इसकी उपासना राजा जैसी संपत्ति प्राप्त कराती है।
इनके अलावा चौदह चक्रों, मेघश्याम रंग की मोटी शिला को भगवान ‘अनन्त’ कहते हैं। इसके पूजन से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फल प्राप्त होते हैं। एक चक्र वाली शिला ‘सुदर्शन’, दो चक्र और गौ खुर वाली ‘मधुसूदन’, दो चक्र और घोड़े के मुख की आकृति वाली ‘हयग्रीव’, और दो चक्र और विकट रूप वाली शिला ‘नरसिंह’ कहलाती है । इसकी पूजा से मनुष्य को वैराग्य हो जाता है।
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जिसमें द्वार-देश में दो चक्र और श्री का चिह्न हो वह ‘वासुदेव’, जिसमें बहुत से छोटे छिद्र हों वह ‘प्रद्युम्न’, जिसमें दो सटे हुए चक्र हों वह ‘संकर्षण’ और जो गोलाकार पीले रंग की हो वह ‘अनिरुद्ध’कहलाती है।
ऐसे करें भगवान शालिग्राम का अभिषेक-
भगवान शालिग्राम का अभिषेक करते समय एक तांबे से बनी प्लेट या कटोरी में तुलसी रखें फिर उस पर शालिग्राम को रखें। इसके बाद शंख में जल भरकर घंटी बजाते हुए श्रीविष्णवे नम: या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय या ॐ नमो नारायणाय, यापुरुषसूक्त के मंत्रों का पाठ करते हुए भगवान शालिग्राम का अभिषेक करें। यदि स्नान कराने वाले जल में इत्र व सफेद चन्दन मिलाना और भी उत्तम माना जाता है ।
शालिग्राम-सिलोदक के लाभ:
शालिग्राम शिला के स्नान का जल ‘शालिग्राम-सिलोदक’ या ‘अष्टांग’ कहलाता है। मान्यता के अनुसार शालिग्राम-सिलोदक (शालिग्राम स्नान का जल) को यदि श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया जाए तो मनुष्य को कोई रोग नहीं होता है व जन्म, मृत्यु और जरा से छुटकारा मिल जाता है। वहीं ये भी माना जाता है कि शालिग्राम-सिलोदक के पीने से अकालमृत्यु और अपमृत्यु का भी नाश हो जाता है।
इसके अलावा शालिग्राम-सिलोदक को अपने ऊपर छिड़कने से तीर्थ में स्नान का फल प्राप्त होने की मान्यता है। जबकि मरणासन्न व्यक्ति के मुख में यदि शालग्राम का जल डाल दिया जाए को वह भगवान श्रीहरि के चरणों में लीन हो जाता है। यह भी माना जाता है कि इस जल को पीने से मनुष्य के सभी पाप दूर हो जाते हैं व पुनर्जन्म नहीं होता है।
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भगवान शालग्राम का पूजन : इन बातों का ध्यान
मान्यता के अनुसार शालिग्रामजी की पूजा स्त्री को नहीं करनी चाहिए। वह अपने प्रतिनिधि के रूप में ब्राह्मण या परिवार के किसी पुरुष सदस्य से शालिग्रामजी की पूजा करवा सकती हैं ।
ध्यान रखें शालिग्राम सदैव सम संख्या में ही पूजे जाते है किन्तु दो शालिग्राम की पूजा नहीं की जाती है। विषम संख्या में पूजा नहीं करने पर भी एक शालिग्रामजी की पूजा का विधान है।
शालिग्राम पूजन से मिलते हैं ये चमत्कारी लाभ:
माना जाता है कि ये सभी शालिग्राम शिलाएं सुख देने वाली हैं क्योंकि जहां शालिग्राम शिला रहती है वहां भगवान श्रीहरि व लक्ष्मीजी के साथ सभी तीर्थ सदैव निवास करते हैं। मनुष्य के बहुत से जन्मों के पुण्यों से यदि कभी गोष्पद (गाय के खुर) चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण-शिला प्राप्त हो जाए तो मान्यता के अनुसार उसके पूजन से पुनर्जन्म नहीं होता है।
शालिग्राम शिला की श्रेणी ऐसे पहचानें: यदि शालिग्राम शिला काली और चिकनी है तो यह उत्तम मानी गयी है । यदि शिला की कालिमा कुछ कम हो तो यह मध्यम श्रेणी की होती है । यदि उसमें दूसरा रंग भी मिला हो तो वह मिश्रित फल देने वाली होती है। माना जाता है कि शालिग्रामशिला के स्पर्श करने मात्र से करोड़ों जन्मों के पाप नाश हो जाते हैं।
शालिग्रामशिला का पूजन :
शालिग्रामशिला का पूजन फल अत्यंत ही खास माना जाता है। कहा जाता है कि चारों वेदों को पढ़ने और तपस्या से जो पुण्य होता है, वही पुण्य शालिग्राम शिला की उपासना से प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा जिस घर में शालिग्राम विराजते हैं वहां कोई अशुभ दृष्टि या अशुभ प्राणी प्रवेश नहीं कर सकता है।
भूलकर भी नहीं रखें पूजा में ये शालिग्राम: वहीं ये भी माना जाता है कि शूल के समान नुकीले शालिग्राम की पूजा मृत्युकारक होती है। जबकि टेड़े मुख वाले शालिग्राम की पूजा से दरिद्रता आती है। वहीं खंडित चक्र वाले शालिग्राम की पूजा से मनुष्य रोगी हो जाता है। इसके अलावा फटे हुए शालिग्राम की पूजा मृत्युकारक होती है वहीं शालिग्राम के पिंगल वर्ण की पूजा अनिष्टकारक मानी जाती है। अत: इन सबकी पूजा नहीं करनी चाहिए।