जीवित्पुत्रिका व्रत, शुक्रवार 6 अक्टूबर 2023 को
अष्टमी तिथि का प्रारम्भः 06 अक्टूबर 2023 को सुबह 06:34 बजे से (इस दिन पूजा का समय शाम 6 से रात 8 बजे तक)
अष्टमी तिथि समापन: शनिवार 07 अक्टूबर 2023 को सुबह 08:08 बजे
पारण नवमी को सात अक्टूबर 8.08 बजे के बाद
शिव योगः 6 अक्टूबर को
सर्वार्थ सिद्धि योग: 6 अक्टूबर रात 09:32 बजे से सात अक्टूबर 06:14 बजे तक
1. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं एक दिन पहले किसी पवित्र नदी में स्नान कर पूजा करती हैं। इसके बाद सात्विक यानी बिना प्याज, लहसुन वाला भोजन करती हैं। मन को शुद्ध रखते हुए व्रत के लिए खुद को तैयार करती हैं।
2. दूसरे दिन यानी जितिया व्रत के दिन निर्जला व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं।
3. व्रत के दूसरे दिन यानी नवमी तिथि में जितिया व्रत का पारण करती हैं। जितिया व्रत का पारण पूजा-पाठ और सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व में व्रती महिलाओं का साफ-सफाई और इन नियमों का खास ध्यान रखना पड़ता है।
जितिया पूजा सामग्री लिस्ट
1. कुश जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाने के लिए
2. गाय का गोबर (चील व सियारिन बनाने के लिए)
3. अक्षत, पेड़ा, दूर्वा की माला, पान सुपारी, लौंग इलायची, बांस के पत्ते, सरसों का तेल
4. श्रृंगार का सामान, सिंदूर, पुष्प, धागा, धूप, दीप, मिठाई, फल-फूल
1. जितिया व्रत के दिन व्रती सूर्योदय से पहले स्नान ध्यान करें, व्रत का संकल्प लें।
2. पूजा स्थल को स्वच्छ कर गंगाजल छिड़कें, गाय के गोबर को पूजास्थल से लीपें।
3. छोटा तालाब बनाएं और यहां कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाएं।
4. एक जल का पात्र लें, इसी पात्र में जीमूतवाहन की मूर्ति स्थापित करें।
5. प्रतिमा को धूप, दीप, रोली, चावल, पुष्प चढ़ाएं।
6. गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा बनाएं, फिर सिंदूर का टीका लगाएं।
7. जितिया व्रत की कथा सुनें, सुनाएं, फिर शाम को प्रदोष काल में पूजा करें।
8. अगले दिन पूजा करें, सूर्य को अर्घ्य दें, बाद में पारण करें।
9. तीसरे दिन झोर भात, मरूआ की रोटी और नोनी का साग खाएं।
एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य वध के बाद अश्वत्थामा विचलित थे, क्रुद्ध अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए पांडव पुत्रों की हत्या कर दी। अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे शिशु को भी मार डाला। हालांकि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से उसे जीवित कर दिया। इस संतान का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया, ये जीवित्पुत्रिका बाद में राजा परीक्षित के रूप में मशहूर हो गए। तभी से महिलाएं इस दिन संतान की कुशलता के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखने लगीं।