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होलिका दहन
फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च के दिन मंगलवार की शाम 4 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन 7 मार्च यानी मंगलवार के दिन शाम 6 बजकर 9 मिनट पर होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है। ऐसे में इस बार होलिका दहन 7 मार्च को किया जाएगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन का मुहूर्त 7 मार्च के दिन शाम को 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। यानी इस बार होलिका दहन के लिए कुल 2 घंटे 27 मिनट का समय रहेगा। वहीं, होलिका दहन के दिन भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। ऐसे में होलिका दहन के समय भद्रा का साया इस बार नहीं होगा।
8 मार्च को खेली जाएगी होली
होलिका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल होली 8 मार्च दिन बुधवार को खेली जाएगी। 8 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 7 बजकर 42 मिनट तक रहेगी।
यहां पढ़ें इंट्रेस्टिंग फैक्ट
– मथुरा में होली से 45 दिन पहले ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है। यहां बसंत पंचमी के दिन से ही इस उत्सव की धूम मचना शुरू हो जाती है। इस बार बसंत पंचमी 26 जनवरी को पड़ रही है, इसलिए इसी दिन से यहां होली उत्सव की शुरुआत हो रही है।
– आपको बता दें कि यहां पर लट्ठमारहोली खेली जाती है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं।
– होली के त्योहार में रंग कब से जुड़ा इसको लेकर मतभेद है, लेकिन इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना का वध किया था और जिसकी खुशी में गांव वालों ने रंगोत्सव मनाया था।
– यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग रासलीला रचाई थी और दूसरे दिन रंग खेलकर उत्सव मनाया था। तब से रंग खेलने की परंपरा शुरू हुई। तब से रंग खेलने का प्रचलन है। इसकी शुरुआत वृन्दावन से ही हुई थी और आज ब्रज की होली भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।
– पहले होली का नाम ‘होलिका’ या ‘होलाका’ था। साथ ही होली को आज भी ‘फगुआ’, ‘धुलेंडी’, ‘दोल’ के नाम से जाना जाता है।
– होली के त्योहार से रंग जुडऩे से पहले लोग एक दूसरे पर धूल और किचड़ लगाते थे। इसीलिए इसे धुलेंडी कहा जाता था।
– कहते हैं कि त्रेतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं।
– होली के अगले दिन धुलेंडी के दिन सुबह के समय लोग एक-दूसरे पर कीचड़, धूल लगाते हैं। पुराने समय में यह होता था जिसे धूल स्नान कहते हैं।
– पुराने समय में चिकनी मिट्टी की गारा का या मुलतानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था।
– इसे धुलेंडी को धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन और चैत बदी आदि नामों से भी जाना जाता है।
– आजकल होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है, तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परम्परा रही है।
– कई जगह इसका उल्टा होता है। हालांकि होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन है।
– रंगों का यह त्योहार प्रमुख रूप से 3 दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका को जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं।
– दूसरे दिन लोग एक-दूसरे को रंग व अबीर-गुलाब लगाते हैं जिसे धुरड्डी व धूलिवंदन कहा जाता है।
– होली के पांचवें दिन रंग पंचमी को भी रंगों का उत्सव मनाया जाता है। यही कारण है कि भारत के कई हिस्सों में पांच दिन तक होली खेली जाती है।
– होली के त्योहार के दिन लोग शत्रुता या दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे से गले मिलकर फिर से दोस्त या मित्र बन जाते हैं।
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– महाराष्ट्र में गोविंदा होली अर्थात मटकी-फोड़ होली खेली जाती है। इस दौरान रंगोत्सव भी चलता रहता है।
-तमिलनाडु में लोग होली को कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते हैं। इसीलिए यहां पर होली को कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा-दाहानाम कहते हैं।
– कर्नाटक में होली पर्व को कामना हब्बा के रूप में मनाते हैं।
– आंध्र प्रदेश, तेलंगना में भी ऐसी ही होली होती है।
– होली के दिन भांग पीने का प्रचलन भी सैकड़ों वर्षों से जारी है। कई लोग मानते हैं कि ताड़ी, भांग, ठंडाई और भजिये के बिना होली अधूरी है।
– पुराणों के मुताबिक होली शब्द होलिका से आया है जिसका संबध दैत्यराज हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कहानी से है।
– हिरण्यकश्यप अपने पिछले जन्म में भगवान विष्णु का दरबारी था, लेकिन एक श्राप के कारण उसे धरती पर राक्षस के रूप में जन्म लेना पड़ा।
– हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद उसका विरोध करता था, इसलिए उसने प्रह्लाद को मरवाने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया।
– होलिका के साथ आग में प्रह्लाद भी बैठ गया। इस आग में प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई। तब से इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई के रूप में मनाते हुए होलिका दहन किया जाता है। बाद में हिरण्यकश्यप का भगवान विष्णु के नरसिंहअवतार ने संहार किया था।
– होली के पर्व को न्वान्नेष्ठ यज्ञ कहा जाता था। उस समय अधपके गेहूं का यज्ञ में हवन करके इसे प्रसाद के रूप में लेने का विधान था।
– उस अन्न को होला कहते हैं, तब से इसे होलिकात्स्व भी कहा जाने लगा। तब से आपने देखा होगा कि हम होलिका दहन के समय अधपके अन्न के रूप में गेहंू की बालियों को पका कर उसे प्रसाद के रूप ग्रहण करते हैं।
– श्री ब्रह्मपुराण में लिखा है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चित्त को एकाग्र करके हिंडोले में झूलते हुए श्रीगोविन्द पुरुषोत्तम के दर्शन करने जाते हैं, वो निश्चय ही बैकुंठ लोक को जाते हैं।
– इस दिन आम मंजरी और चंदन मिलाकर खाने का बड़ा महात्म्य माना गया है। इसी दिन ऋषि मनु का भी जन्म हुआ था।
– धार्मिक दृष्टि से होली में लोग रंगों से बदरंग चेहरों और कपड़ों के साथ जो अपनी वेशभूषा बनाते हैं, वह भगवान शिव के गणों की है।
– उनका नाचना-गाना हुड़दंग मचाना और शिवजी की बारात का दृश्य उनकी उपस्थित दर्ज कराता है। इसीलिए होली का संबंध भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है।
– महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी होली का महत्व बताते हुए कहा था कि इस दिन जनता को भय रहित क्रीड़ा करनी चाहिए।
– होली के दिन हंसने, कूदने, नाचने से पापात्मा का अंत हो जाता है। उन्होंने अपनी जनता को होली की ज्वाला की तीन परिक्रमा करके हास-परिहास करने को कहा था। तब से होली खुशियों और उमंगों के त्योहार के रूप में मनाई जाती है।
– कलयुग में होली एक ऐसा त्योहार बन गया है जिस दिन सभी माता-पिता अपने बच्चों को नाचने-कूदने और हुड़दंग करने की इजाजत देते हैं। जबकि अन्य दिनों में थोड़ा सा भी गंदा हो जाने पर बहुत डांटते हैं।
– भारत में होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें, सभी धर्म के लोग एकसाथ मिलकर पर्व मनाते हैं। सभी धर्म के लोग होली को खुशियों का त्योहार मानते हैं। सभी गिले-शिकवे भूलकर एक साथ होली खेलते हैं।
– यही नहीं होली एकमात्र ऐसा त्योहार है जो, पूरी दुनिया में एकसाथ मनाया जता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जहां जिस देश में भी हिन्दु धर्म के लोग बसे हैं, वहां होली का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। यही कारण है कि होली पर्व पर देशभर में विदेशियों की भीड़ उमड़ पड़ती है।