जैसे शुभ समय में मृत्यु आत्मा को सद्गति का संकेत होता है वैसे ही अशुभ समय में मृत्यु आत्मा के लिए दुर्गति का संकेत होता है। जैसे कि माना जाता है कि पंचक काल में किसी व्यक्ति का मरना आत्मा के लिए अशुभ होता है, साथ ही यह मृतक के परिवार के लिए भी संकट लाता है।
खरमास में मृत्यु का अर्थ
भारतीय पंचांग पद्धति में सौर पौष मास को खर मास कहते हैं। इसे मल मास या काला महीना भी कहा जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार यदि किसी व्यक्ति खरमास में मौत हो रही है तो इसका अर्थ है कि उसने अच्छे कर्म अपने जीवन में नहीं किए हैं। इसका एक और अर्थ है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु खरमास में हुई है तो उसे मोक्ष नहीं मिलेगा और उसे नर्क मिलेगा। साथ ही कर्मफल भुगतने के लिए फिर से धरती पर जन्म लेना होगा।
इसीलिए भीष्म ने नहीं त्यागे थे प्राण
महाभारत की कथा के अनुसार पौष खर मास में कुरूक्षेत्र के युद्ध में जब अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों से वेध दिया तो भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। उन्होंने सूर्य उत्तरायण होने और खरमास बीतने का इंतजार किया। इसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्राण त्यागे, क्योंकि मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति खर मास में प्राण त्याग करता है तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा। इसी कारण उन्होंने अर्जुन से फिर एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे।इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास में अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसलिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।