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रतलाम

पूरे विश्व में एक मात्र यहां है परमारकालीन नवदुर्गा मंदिर, आप भी करें दर्शन

मध्यप्रदेश के रतलाम जिले से 33 किमी दूर गांव पुनियाखेड़ी में 200 वर्ष पुराना मंंदिर

रतलामSep 30, 2019 / 12:52 pm

Gourishankar Jodha

पूरे विश्व में एक मात्र यहां है परमारकालीन नवदुर्गा मंदिर, आप भी करें दर्शन

पूरे विश्व में एक मात्र यहां है परमारकालीन नवदुर्गा मंदिर, आप भी करें दर्शन

रतलाम/आम्बा। पूरे विश्व में परमारकालीन एक ही नवदुर्गा का प्राचीन मंदिर है जो मध्यप्रदेश के रतलाम जिले से 33 किमी दूर ग्राम पुनियाखेड़ी में स्थित है। यहां हर नवरात्र में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, तो जिले सहित अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में भक्त दर्शनार्थ पहुंचते है और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैंं। मातारानी के दर्शन के लिए आम्बा से मंदिर तक सीसीरोड है। यह अति चमत्कारी मंदिर विक्रम से पहले पाषण कालीन बताया जाता है। किवंदीत है कि यह मंदिर भगवान कृष्ण के काल में भी यहीं पर मौजूद था। बताया जाता है श्री कृष्ण के महापरणाय के बाद मंदिर की सारी मुर्तियां जमीन मे समाई गई और पाषण कालीन के अवशेष रह गए। ग्रामीणों ने फिर खुदाई की तो जमीन के अंदर से प्रतिमाएं बहार आई। कहा जाता है की नौ दुर्गा पूरे विश्व में एक साथ कही विराजित नहीं है, केवल यहीं पर है।
लखमा आदि रोग होते दूर यहां स्नान करने से
सोमेश सांकला ने बताया कि रतलाम जिले में शहर से 30 किमी दूर आम्बा से ३ किमी दूर पुनियाखेड़ी में 200 वर्ष प्राचीन नवदुर्गा का मंदिर है। खास बात यह है की यहां हर साल दोनों नवरात्र में भक्तों का ताता रहता है। गांव के ही यसवंत मईड़ा का कहना है की माँ के दरबार में जो भी भक्त आता है, कभी खाली नहीं जाता कष्टों के निवारण के साथ ही जिन लोगों को लखमा हो जाता विशेष तोर पर नवरात्र में भक्त वहां रहकर सुबह शाम परिक्रमा कर अपने दुखों का निवारण होता है।
यहां है कल्पवृक्ष का पेड़ भी
यहां की मान्यता है की बावड़ी के पानी से स्नान करने से सारे दु:ख दूर हो जाते है, यहां कल्पवृक्ष का पेड़ भी है, ऐसी मान्यता है की इस पेड़ में ऐसी आकृति चित्र है जो मन की कल्पना पूरी करते है। पेड़ की परिक्रमा लेने से सारे दु:ख दूर हो जाते है। मनोकामना पूरी होती है। कैलाशचंद्र बैरागी कुशलगढ़ बांसवाडा ने बताया की हर नवरात्र में आते है। वे यहां 10 सालों से आ रहे हैं। बाजना के गौतम ने बताया की दोनों पति पत्नी 20 सालों से आ रहे हैं। अष्टमी और नवमी की रात मंदिर में ही रुककर माता की आस्था में लीन होते है।

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