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रतलाम के मां पद्मावती मंदिर से क्षत्राणियों ने भरी जौहर की हुंकार

राजमहल में मां पद्यावती का प्राचीन मंदिर, चित्तौड़ में जोहर के लिए हाथों में तलवार लिए कई क्षत्राणियां आशीर्वाद लेकर हुई रवाना
 

रतलामJan 24, 2018 / 05:23 pm

harinath dwivedi

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रतलाम. रतलाम के राजमहल में मां पद्यावती का प्राचीन मंदिर है, जहां से जिले की क्षत्राणियों ने फिल्म पद्यावत के विरोध में हुंकार भरते हुए चित्तौड़ में जौहर के लिए रवाना हुई। जिले सहित प्रदेशभर से 1500 से 2 हजार और चित्तौडग़ढ़ में करीब 4 हजार क्षत्राणियों ने जौहर के लिए डेरा डाला है। बता दें कि राजमहल परिसर में भूमि के धरातल से लगभग ७ फीट नीचे गर्भगृह में महादेवी पद्मावती के साथ मां चामुंडा विराजित है।
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धार्मिक किवंदती है कि 1773 से 1800 ई तक रतलाम के शासक रहे राजा पद्मसिंह देवी के उपासक थे, वे नित्य ब्रह्ममुहूर्त में देवी मां की उपासना करते थे। इसलिए महाराज ने राजमहल में एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया। आज जहां राजस्थान सहित रानी पद्यावती पर बनाई गई फिल्म का विरोध देशभर में किया जा रहा है, तो कहीं आगजनी तो कहीं हाईवे जाम के साथ हर दिन सेंसर बोर्ड और फिल्मकार का पुतला दहन किया जा रहा है। रतलाम की क्षत्राणियों ने भी विरोध स्वरूप गत दिवस चित्तौडग़ढ़ रवाना होने के पूर्व हाथों में तलवार धारण कर जयकारों के साथ आशीर्वाद लेकर रवानगी डाली है।
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1773 से 1800 के मध्य बना मंदिर
इतिहासकार पं. गोचर शर्मा के अनुसार राजवंश की नौवी पीढ़ी के महाराजा पद्मसिंह राठौड़़ सन् १७७३ से 1800 ई. तक शासक रहे, किवंदती है कि सन् 1776 ई में महाराजा ने दक्षिण भारत स्थित तिरुपति व्यंकटेश बालाजी के दर्शनार्थ आंध्र प्रदेश के चितुर जिले के तिरुकला पर्वतश्रेणी की गोद में स्थित दर्शन करने गए थे। पुराणों के अनुसार देवी पद्यावती प्रभु व्यंकटेश की पत्नी है, तिरुपति के पास एक छोटा सा गांव है तिरुचुरा, वहां मां पद्यावती का एक अत्यंत ही सुंदर मंदिर है। यह मंदिर अलमेलमंगापुरम के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि तिरुपति बालाजी से मांगी गई मुराद तभी पूर्ण होती है जब मां पद्यावती के दर्शनकर देवी मां पद्यावती, ज्योतिरूप महान..विघ्न हरो मंगल करो…करो मात् कल्याण…के साथ वंदन कर आशीर्वाद प्राप्त करे।
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कमल के फूल पर विराजी मां पद्मावती


कहा जाता है कि तिरुचुरा गांव में स्थित तालाब में खिले कमल (पद्म) के फूलों से देवी पद्यावती का जन्म हुआ था। मां पद्मावती श्री महालक्ष्मी का एक विशेष स्वरूप है। देवी पद्मावती कमल के पुष्प पर विराजित है तथा इनके दोनों हाथों में कमल के फूल है। महाराजा पद्मसिंह को मां लक्ष्मी का यह स्वरूप बहुत ही प्रिय लगा अतएवं यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने रतलाम के राजमहल में माता मंदिर का निर्माण करवाया।
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