सबसे पहले यह सोचना है कि हम जैन है
मुनिश्री ने कहा कि वीणा में अनेक तरह के तार अलग.अलग होते है मगर जब उन्हे स्वर का रुप दिया जाता है तो सुमधुर हो जाते है। इसी तरह समाज को संगठित करने का प्रयास हर दम किया जाना चाहिए। हमारा समाज मंदिर-उपाश्रय का हो या बात दिगम्बर व श्वेताम्बर की हो। मगर सबसे पहले हमें ये सोचना है कि हम जैन है और जैन समाज के संगठन को हम इतना मजबूत बनाएगें कि चारों तरफ हमारी एकता का भी उदाहरण दिया जाए।
समता कुंज में अमृत देशना के दौरान आचार्यश्री रामेश ने कहा कि कर्मों का फल हर हाल में मिलता है। कर्मों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता, हर व्यक्ति को इन्हें भोगना पड़ता है। 23 तीर्थकरों के कष्ट एक तरफ और भगवान महावीर के कष्ट एक तरफ रहे है, लेकिन भगवान महावीर ने कभी शिकायत नहीं की। उन्हें साढ़े बारह वर्ष तक कर्म भोगना पड़े। महावीर ने पूर्व जन्म में दास के कानों में कीले ठोके थे, उसका फल भी उन्हें प्राप्त हुआ। व्यक्ति को पाप और पुण्य दोनों का फल मिलता है। इसके लिए किसी को दोषारोपण नहीं करना चाहिए। चातुर्माक संयोजक महेंद्र गादिया ने बताया कि इस मौके पर प्रशममुनि, गौतममुनि, महासती रोनकश्री ने भी संबोधित किया। तपस्वी परिवारों की और से पारसमल चिप्पड़, सुरेन्द्र बोरदिया एवं बाफना परिवार की बहु-बेटियों ने विचार रखे। संचालन विनोद मेहता एवं महेश नाहटा द्वारा किया गया।