प्रभु श्री चारभुजानाथ की शाम 4 बजे कसार भोग आरती के बाद मंदिर के पुजारी ग्रामीण मंदिर प्रांगण से ढोल-नगाड़ों के साथ रवाना हुए, जो रघुनाथ अखाड़े से राम की प्रतिमा को शृंगारित कर पालकी में बैठाया गया। वहीं, ईमली वाले हनुमान मंदिर पर आयुधों व शस्त्रों का पूजन किया गया । अखाड़े के बाहर ही मंदिर के हवलदार जालमसिंह ने कद्दू काटकर बलि देने की रस्म अदा की। वहां से ढोल नगाड़ों के साथ ही गाते-बजाते जवाहर सागर मैदान पहुंचे।
मैदान में सरगरा समाज द्वारा रावण, कुम्भकरण व मेघनाथ के मुखौटे पत्थरों से बनाकर रंगों से सजावट की गई थी। रावण के सिर व पेट के मध्य में मटकी रखी गई। जयकारों के साथ देवस्थान के सिपाही बन्दूक से रावण को छलनी करने को तैनात हो गए। इसके बाद सिपाहियों ने बारी-बारी से तीनों के पुतलों पर गोलियां चलाई। 5 राउण्ड गोलियां चलाने के बाद भी रावण नहीं मरा। इसके बाद सिपाही सोहनसिंह व ललितसिंह ने निशाना साधकर रावण के पेट को छलनी किया व माथे के उड़ाया। इसके बाद ग्रामीणों ने पत्थर मार-मार कर रावण को जमींदोज कर दिया। रावण के जमींदोज होने पर ग्रामीण नाचते-गाते खुशियां मनाते हुए मंदिर पहुंचे। वहीं, रूपलाल गणेशलाल वगडवाल द्वारा प्रसाद वितरण किया गया।