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नियम सात ने लगाया अड़गा, उद्योग को विस्तार का इंतजार, नहीं मिल रही एनओसी

सफेद सोने के रूप में पहचान बना चुके मार्बल को विकास की दरकार है। धीरे-धीरे ये उद्योग अनदेखी के कारण इसकी मांग घटती जा रही है।

राजसमंदJan 28, 2025 / 10:50 am

Madhusudan Sharma

Marbel news
राजसमंद. सफेद सोने के रूप में पहचान बना चुके मार्बल को विकास की दरकार है। धीरे-धीरे ये उद्योग अनदेखी के कारण इसकी मांग घटती जा रही है। लेकिन राज्य सरकार इस पर कोई ध्यान दे रही है। ऐसे में यहां आने वाले नए उद्योग भी इस क्षेत्र को अब मुफीद नहीं मान रहे हैं। यही नहीं नियमों की पेचीदगियों के कारण भी नए उद्योगों को विस्तार और विकास का इंतजार है। इसी कारण जिले में मार्बल सहित अनेक उद्योगों को लगने की सैकड़ों फाइलें विभागों में पड़ी है, लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। क्योंकि सरकार की ओर से जो नियम जोड़ा गया है। उससे उद्योगों का ना तो विस्तार हो पा रहा है और ना ही वे और विकास करना चाह रहे हैं। ऐसे में मार्बल, ग्रेनाइट उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

सलाहकार समिति में हर बार उठा मामला, पर नहीं दे रहे ध्यान

अवधि नियमन का मामला हर माह होने वाली जिला औधोगिकसलाकर समिति की बैठक में उठाया जाता है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मार्ग दर्शन के नाम पर सरकार को भिजवाने की कहकर प्रशासन की ओर से पल्ला झाड़ा जा रहा है। ऐसे में जिले में में मार्बल् उद्योग की मांग कम होती जा रही है। नए उद्योग लगाने से कतरा रहे हैं। सरकार जिला स्तर पर ही नियमन अवधि की छूट दे तो उद्योगों का विस्तार हो सकता है।

आखिर क्या है ये नियम

राजस्थान भू -राजस्व (औद्योगिक क्षेत्र आवंटन) नियम, 1959 के नियम -7 में यह प्रावधान किया है कि नियम, 1959 के अंतर्गत औद्योगिक के प्रयोजनार्थ आवंटित भूमि का उपयोग कब्जा हासिल किए जाने के दो वर्ष में किया जाना होगा। इस नियम-7 के साथ परन्तुकजोड़ा गया। जिसमें अगर आवंटी की ओर से भूमि का उपयोग दो वर्ष में नहीं किया गया तो सरकार कालावधि को बढ़ा सकेगी। ऐसे मामले में आवेदक खंड आयुक्त के माध्यम से आवेदन करेगा। वहां से इसकी जांच की जाएगी और टिप्पणी कर राज्य सरकार के समक्ष भेजा जाएगा। इस प्रक्रिया में लंबा समय लगने के कारण उद्योग लगाने वाले लोग यहां रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

नियम, 1959 के तहत हुआ था भूमि आवंटन, डीआईसी नहीं नहीं दे रहा एनओसी

राजसमन्द जिले में औधोगिक गतिविधि की शुरुआत करीब 1980 में हुई। इस अवधि पश्चात औद्योगिक इकाईयों की स्थापना के लिए राजस्थान भू राजस्व (औधोगीक क्षेत्र आवंटन) नियम, 1959 के तहत भूमि का आवंटन किया गया था। जिस अवधि में आवंटन किया गया था। उस समय उद्योग स्थापना के लिए आवश्यक साधन मशीनरी, श्रण, विद्युत इत्यादि की उपलब्धता में काफी दिक्कत रहती थी। इसके परिणाम उद्योगों की स्थापना में देरी हुई। ऐसी आवंटित भूमियों पर वर्तमान में उद्योग स्थापित हैं जो वर्तमान में भी उत्पादनरत है। वे उद्योग नवीनीकरण अथवा विस्तार करना चाहते है, लेकिन अवधि नियमन नहीं होने से डीआईसी की ओर से इन्हे एनओसी नहीं दी जा रही है। इस कारण उन्हे लोन नहीं मिल पाता और उद्यमी उस जमीन पर कुछ नहीं कर पाते हैं।

जीएसटी की मार से टूटी कमर

उद्योगों का नियमन नहीं हो पाने के कारण नए उद्योग लग नहीं पा रहे हैं। पुराने उद्योगों को एनओसी डीआईसी की ओर से प्रदान नहीं की जा रही है। कई उद्योग संचालित हैं, लेकिन नियमन नहीं होने के कारण इनका विस्तार नहीं हो पा रहा है। जिससे औद्योगिक विकास अवरूद्ध है। दूसरा कारण ये है कि जीएसटी की मार से भी उद्योगों की कमर टूट गई है। यहां पर कंटेनर डिपो खुले तो माल परिवहन को आसानी हो सकती है। जिससे मार्बल, ग्रेनाइट उद्योग को लाभ मिल सकता है।
सत्यप्रकाश काबरा, अध्यक्ष, मार्बल गैंगसा एसोसिएशन, राजसमंद

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