गोबर से बनी गैस, गोसेवकों व गोमाता के लिए उपयोगी बनी
इस प्लांट से प्रतिदिन लगभग 60 गोसेवकों को मुफ्त में ईंधन मिल रहा है। गोबर से बनी इस गैस का उपयोग केवल खाना पकाने तक सीमित नहीं है, बल्कि हर दिन 500 से ज्यादा गौ माताओं के लिए लापसी (खाना) भी तैयार किया जा रहा है। इस अद्भुत प्रक्रिया को देखने के लिए हाल ही में जिला परिषद राजसमंद के सीईओ, श्री बृज मोहन बैरवा ने निरीक्षण किया, और यहां गैस बनाने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली।
कैसे काम करता है गोवर्धन प्लांट
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण योजना के जिला समन्वयक नानालाल सालवी ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत, इस पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए श्री धेनु गोपाल गोशाला का चयन किया गया था। इस प्रोजेक्ट के तहत 35 टन गोबर की स्लरी को टैंक में डाला जाता है, जिससे मिथेन गैस उत्पन्न होती है। जिसे बायोगैस भी कहा जाता है। वर्तमान में 20 टन गोबर से यह गैस तैयार की जा रही है, जो 10 से 15 दिनों तक ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है। इस ऊर्जा से यहां प्रतिदिन 50 से अधिक लोगों का भोजन पकता है, साथ ही गोशाला में गोवंश के लिए काढ़ा और दलिया भी इसी ईंधन से तैयार किया जा रहा है।
वित्तीय और पर्यावरणीय लाभ
इस नवाचार से जहां गोशाला की मासिक बचत में करीब 21,000 रुपये की कमी आई है, वहीं पर्यावरण को भी भारी फायदा हुआ है। गोबर के वेस्ट से वर्मी कम्पोस्ट बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है। इसके अतिरिक्त, इस गैस का उपयोग गोशाला में विद्युत जनरेटर को चलाने के लिए भी किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा का एक और स्थिर स्रोत प्राप्त होगा।
गौसेवा और स्वच्छता का अद्भुत संगम
इस प्लांट से न सिर्फ गौवंश की देखभाल और सेवा में सुधार हुआ है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन गया है कि किस तरह से नवाचारों के माध्यम से स्वच्छता, ऊर्जा और बचत के लक्ष्य को एक साथ हासिल किया जा सकता है। यही नहीं, इस प्लांट ने दिखा दिया है कि छोटे-छोटे प्रयासों से न सिर्फ गोशालाओं का संचालन आसान हो सकता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दिया जा सकता है।
नए आयामों की ओर
इस नवाचार के बाद, गोशाला में विद्युत उत्पादन के लिए भी मिथेन गैस का उपयोग किया जाएगा, जिससे जनरेटर को चलाने में मदद मिलेगी। साथ ही, वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन भी किया जाएगा, जिससे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली खाद उपलब्ध हो सकेगी। यह परियोजना स्थानीय कृषि और पशुपालन में भी लाभकारी साबित हो सकती है।