जहां तक सीट पर चुनाव परिणाम की बात है तो एक उपचुनाव को छोड़कर पिछले 8 चुनाव में यानी 38 साल से यहां एक ही दल का कोई विधायक लगातार नहीं चुना गया। उल्लेखनीय है कि राजगढ़ से यदि भाजपा सौंधिया समाज को टिकट देती है तो ब्यावरा से सौंधिया की जगह अन्य समाज को टिकट देना होगा। ब्यावरा से 2003 से लगातार दांगी समाज के उम्मीदवार को मौका देती आई है।
भाजपा से प्रमुख दावेदार:
दिलवर यादव, बद्रीलाल यादव, नारायणसिंह पंवार, जसवंत गुर्जर और जगदीश पंवार।
कांग्रेस से दावेदार: रामचंद्र दांगी और पुरुषोत्तम दांगी।
यूं समझें सामाजिक समीकरण
-दांगी समाज लगभग 35000
-सौंधिया समाज लगभग 26000
-गुर्जर समाज लगभग 11000
-लोधा-लोधी समाज लगभग 14000
-यादव समाज लगभग 11000
(नोट- इसके अलावा मीणा, लववंशी, राजपूत, ब्राह्मण समाज भी यहां काफी है।)
एक बार बागी ने मारी बाजी
इस सीट पर शुरू से उलटफेर होता रहा है। लेकिन 1990 में भाजपा ने जब वरिष्ठ नेता दत्तात्रय जगताप को टिकट नहीं दिया तो वे बागी हो गए। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता।
यह भी ट्रेंड…
एक ही पार्टी का लगातार विधायक नहीं रहा पिछले 25 साल का यदि रिकॉर्ड देखा जाए तो पता चलता है कि यहां लगातार एक ही दल का विधायक दो बार नहीं रह पाया है। यानी हर बार बीजेपी-कांग्रेस की अदला-बदली होती रही है। पिछली बार अवश्य उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जीते थे, लेकिन उन्होंने आमचुनाव में पार्टी को मिली सीट को बरकरार रखा था।
1985 विजयसिंह सौंधिया कांग्रेस
1990 दत्तात्रय जगताप स्वतंत्र
1993 बद्रीलाल यादव बीजेपी
1998 बलरामसिंह गुर्जर कांग्रेस
2003 बद्रीलाल यादव बीजेपी
2008 पुरुषोत्तम दांगी कांग्रेस
2013 नारायणसिंह पंवार बीजेपी
2018 गोवर्धन दांगी कांग्रेस
2020 रामचंद्र दांगी कांग्रेस