पं. मनोज शुक्ला ने जुड़वास के बारे में बताया कि सनातन धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय में 18654 प्रकार के रीति रिवाज तथा 160 प्रकार के तीज-त्योहार हैं। (chhattisgarh news) इन सबका वैज्ञानिक महत्त्व भी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले हमारे पूर्वज ऋषि, मुनि व मनीषियों ने शोधकार्य के द्वारा हमें अति आवश्यक कार्यो को पर्व, त्योहार, व्रत तथा उत्सव के रूप में प्रदान किया है, जिसको मनाने के पीछे हमारा लाभ ही छुपा हुआ है। (raipur news in hindi) इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की प्रथा परम्परा में मनाए जाने वाले जुड़वास शांति पूजा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, जो कि प्राय: समस्त देवी मंदिरों में तपती गर्मी के बाद बरसात लगने के बीच की संधिकाल वाले समय में किया जाता है।
ऋतु परिवर्तन तथा मौसम परिवर्तन के समय विभिन्न प्रकार के बीमारियों का आगमन होता है, जिसे क्षेत्रीय भाषा में माता आ जाना बोलते हैं। कहीं-कहीं पर छोटी माता, बड़ी माता भी बोली जाती है, जो कि संक्रमित होने वाले चेचक आदि बीमारियों का ही रूप होता है। (Raipur News) ऐसी कोई भी बीमारी न हो, इसलिये ही चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी व अष्टमी तिथि को शीतला सप्तमी व शीतला अष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। (CG Raipur news) इस दिन बासी भोजन करने की परम्परा है, इसलिये इसे बसोड़ा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
जर्मन रिसर्च: बासी भोजन से बनती है एंटीबॉडी पं. मनोज शुक्ला ने बताया, शीतला सप्तमी के दिन बासी भोजन करने के विषय पर जर्मनी के एक शोध संस्थान ने रिसर्च किया था, जिसके रिसर्च पेपर का उद्धरण 1968 में एक अमरीकन पत्रकार ने किया था। इसके अनुसार इस तिथि को बासी भोजन किया जाए और 24 घंटेे तक पेट मे कोई भी गर्म पेय या खाद्य पदार्थ नहीं जाए तो शरीर में एक विशिष्ट बैक्टीरिया का उत्पादन हो जाता है, जो शरीर मे एंटीबॉडी का कार्य करता है। (CG News Update) इस एंटीबॉडी की मदद से पूरे साल भर तक के लिए हानिकारक वायरस आदि से सुरक्षा मिलती है। स्कंद पुराण में माता शीतला की स्तुति के लिए शीतलाष्टक स्तोत्र दिया गया है, जिसकी रचना स्वयं भगवान शंकर ने लोकहित में की है।