दूध का था कारोबार
ब्रह्म ऋषि नागा नरेंद्र पुरी भभूतिया जो कि सूपाताल बजरंग मठ गड़हा जबलपुर से यहां पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि घर में दूध का बड़ा कारोबार था। लेकिन मन कभी भी नहीं लगा। ९ साल की उम्र में माता-पिता से आशीर्वाद लेकर घर छोड़ दिया। मां ने कहा था कि लौट के मत आना। पिछले वर्ष माताजी का देहांत 103 साल की उम्र में हो गया। गुरुजी ने सूचना दी। लेकिन मां ने कहा था कभी नहीं लौटना, सो हमने उनकी आज्ञा मानी।दिनेश सिंह से बन गए दिनेश पुरी
जूना अखाड़े के नागा साधु दिनेश पुरी 58 वर्ष के हो चके हैं। उन्होंने बताया कि 20 साल की उम्र में वे बिजली फिटिंग का काम करते थे। किसी भी धार्मिक स्थल में काम का पैसा कभी नहीं लिया। क्योंकि मन में एेसा था कि धर्म के लिए कुछ करना है। धर्म के प्रति खिंचाव बढ़ता गया और उन्होंने सांसारिक जीवन से वैराग्य ले लिया।वैदिक पर्यावरण में पीएचडी
संपूर्णानंद विवि बनारस से वैदिक पर्यावरण में शोध कर पीएचडी होल्डर आनंदेश्वर का दावा है कि वे लोगों के मन के सवाल जान जाते हैं। ग्वालियर के रहने वाले गृहस्थ संत ने ज्योतिष वेद में एमए किया है। ३६ वर्षीय बाबा का कहना है कि वे लोगों की समस्याओं का समाधान निशुल्क करते हैं।
सरकारी नौकरी वाले बाबा
राजधानी में सरकारी नौकरी करने वाले रोहिणीपूरम गोल चौक निवासी गौतम सिंह नागेश ने भोलेनाथ के उपासक हैं। इनका दावा है कि वे दूध और पानी के अलावा हरी मिर्च खाते हैं। अन्न त्याग दिया है। इन्होंने दूसरी शादी की है। पहली पत्नी की मौत प्रेग्नेंसी के दौरान हो गई। तब से इनका मन अन्न से टूट गया। मजेदार बात ये है कि वे भारतीय भूवैज्ञानिक में सर्वेक्षण में वाहन चालक की नौकरी भी कर रहे हैं।12वीं के बाद आया विचार
महंत सुबोधा नंद गिरी जूना अखाड़ा हरिद्वार से आए हैं। वे कहते हैं कि १२वीं तक तो हमने सोचा ही नहीं था कि वैराग्य ले लेंगे। कॉलेज भी किया। बीए करने के बाद ईश्वर की कृपा हुई और हमने दुनियादारी से किनारा कर लिया। वे कहते हैं मां-बाप को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्हें सुख देने से हमें जो सुख मिलेगा उसका कोई मुकाबला नहीं।