ये है प्रक्रिया
बॉयोटेक्नोलाजी वैज्ञानिक प्रो. डॉ. सतीश वेरुलकर ने बताया कि इस प्रयोग कि अभी शुरुआत हुई है। काम अभी 10 से 20 प्रतिशत हुआ है। अभी इसे बाजार में आने में समय लग सकता है। इसे बनाने के लिए पहले लैब में चावल से स्टार्च निकालते हैं। इसमें कई तरह के अम्ल डालते हैं। इसका घोल बनाकर एक मशीन में एक उचित तापमान और दबाव में पॉलीमर (अणु मात्रा वाला कार्बनिक यौगिक) बनाया जाता है।
सालभर या ज्यादा लग सकता है समय
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन को तैयार होने में लगभग सालभर या उससे कुछ ज्यादा का भी समय लग सकता है, जिसके बाद इसके कमर्शियल उत्पादन की तैयारी की जाएगी।
बार्क से हुआ अनुबंध
अनुसंधान में प्रारंभिक प्रयोग सफल हुआ है। प्रयोग में बने उत्पाद को उन्नत करने और बाजार में भेजने लायक बनाने के लिए कृषि विवि और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई यानी बार्क के मध्य संयुक्त अनुसंधान के लिए तीन साल का अनुबंध किया है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश चंदेल ने कहा कि अनुसंधान में पहले चरण का काम कर लिया गया है। 15 से 20 फीसदी तक सफलता इसमें मिल गई है। आने वाले समय में सिंगल यूज प्लास्टिक का यह एक बेहतर विकल्प उभरकर आएगा।