इस अवसर पर किसान बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा करेंगे। इस दिन बैलों की पूजा-पाठ कर घर में सुख-शांति की कामना की जाती है। इसके बाद छत्तीसगढ़ी व्यंजन ठेठरी-खुरमी का भोग भी लगाया जाता है। बच्चे मिट्टी के बैल दौड़ाते हुए नजर आते हैं। पोला पर ग्रामीण अंचलों में बैल दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। इसे लेकर ग्रामीणों में उत्साह बना रहता है। शुक्रवार को बारिश की वजह से मिट्टी के बैलों की खरीदी प्रभावित हुई।
सुबह से ही कुम्हार मिट्टी के बैल की बिक्री के लिए बाजार सजाए हुए थे। एक बैल जोड़ी 40 रुपए में बिका। पचेड़ा से आए मिनेश ने बताया कि मिट्टी से बनने वाले खिलौनों की मांग अब कम हो गई है, त्योहार की वजह से लोग खरीदकर भले ही ले जाते हैं, लेकिन वर्तमान दौर इलेक्ट्रानिक का का है। इसके अलावा आजकल पोला में लोग लकड़ी के बने बैलगाड़ी को खरीद कर ले जाते हैं। वहीं केजू राम ने बताया कि शासन की ओर से माटी के कलाकारों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। इसके अलावा हमें इलेक्ट्रानिक चाक भी नहीं मिला है।