आमतौर पर लोग पीतल के दीपपात्र में अखंड ज्योति जलाते हैं। यदि आपके पास पीतल का पात्र न हो तो आप मिट्टी का दीपपात्र भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर मिट्टी के दीपपात्र में अखंड ज्योति जलाने से पहले दीपपात्र को पहले पानी में भिगो दें और उसे पानी से निकालकर साफ कपड़े से पोछकर सुखा लें। इस बात का ध्यान जरूर देना चाहिए कि कहीं आपका दीपपात्र टूटा तो नहीं है। टूटे हुए दीपपात्र में दीपक जलाने से दरिद्रता आती है।
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने से पहले हम मन में संकल्प लेते हैं और मां देवी से प्रार्थना करते हैं कि हमारी मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाएं। अखंड दीपक को कभी भी जमीन पर न रखें। दीपक को चौकी या पटरे में रखकर ही जलाएं। दुर्गा मां के सामने यदि आप जमीन पर दीपक रख रहे हैं तो अष्टदल बनाकर रखें।
अखंड ज्योति की बाती का विशेष महत्व है। यह बाती रक्षासूत्र यानि कलावा से बनाई जाती है। सवा हाथ का रक्षासूत्र लेकर उसे बाती की तरह दीपक के बीचोंबीच रखें। सबसे पहले एक चौकी लें। उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें। इसके बाद माता की तस्वीर रखें। फिर लाल में रंग में रंगे हुए चावल लें। इसके बाद उस चावल से आठ पंखुड़ी वाला अष्टदल कमल बना लें। इसके बाद अष्टदल कमल पर अखंड ज्योति को रख दें।
माता के दाहिनी तरफ घी का दीपक जलाना चाहिए जबकि तेल का दीपक माता के बायीं तरफ प्रज्जवलित करना चाहिए। ज्योति का प्रतिदिन पूजन करना चाहिए, क्योंकि ज्योति भगवती का स्वरुप है। ज्योत को पुष्प अर्पित करना चाहिए और माता को प्रणाम करना चाहिए।
ईशान कोण यानि उत्तर पूर्व दिशा को देवी-देवताओं का स्थान माना गया है। इसलिए अखंड ज्योति पूर्व- दक्षिण कोण यानि आग्नेय कोण में रखना शुभ माना जाता है। ध्यान रखें कि पूजा के समय ज्योति का मुख पूर्व या फिर उत्तर दिशा में होना चाहिए। इस बात का जरूर ध्यान दें कि कभी भी अशुद्ध अवस्था में दीपक को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
अखंड ज्योत जलाने से पहले हाथ जोड़कर श्रीगणेश, देवी दुर्गा और शिवजी की आराधना करें। दीपक प्रज्जवलित करते वक्त मन में मनोकामना सोच लें और मां से प्रार्थना करें कि पूजा की समाप्ति के साथ आपकी मनोकामना भी पूर्ण हो जाए।