साधु-संतों के आवागमन के लिए महंत बालक दास ने उठाई ये मांग
महंत बालक दास ने साधू संतों के सहूलियत के लिए मांग करते हुए कहा कि प्रयागराज आने के लिए ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाए और एक शुल्क रखा जाए। अगर संभव हो तो श्रद्धालुओं लिए इस दौरान निशुल्क यात्रा करवाई जाए। कुंभ के दौरान संतों का टोल टैक्स भी माफ किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाए कि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु यहां आ सकें।
महाकुंभ स्नान की महत्ता
महाकुंभ में चार राजसी स्नान के महत्व पर उन्होंने कहा है कि संगम की अपनी महिमा है। त्रिवेणी संगम साधारण संगम नहीं है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों को संगम होता है। इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। यहां स्नान करने के बाद भक्ति और ज्ञान प्राप्त होता है। रामचरितमानस में तुलसीदास ने इसका जिक्र किया है। महाकुंभ में शामिल होने वाले अखाड़े किस दिन स्नान करते हैं। इस पर पातालपुरी मठ दिगंंबर अखाड़ा के महंत बालक दास ने कहा है कि चार स्नान होते हैं। राजसी स्नान के दिन सभी अखाड़े अपने समय के अनुसार स्नान करेंगे। इस दिन सभी अपनी-अपनी सेना के साथ स्नान के लिए निकलते हैं।
राजसी स्नान में शामिल होते हैं ये अखाड़े
अखाड़ों के बारे में उन्होंने कहा कुल 13 अखाड़े हैं। शैव, वैष्णव, और उदासीन पंथ के संन्यासियों के कुल 13 अखाड़े हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े, उदासीन संप्रदाय के 4 अखाड़े है। सभी अखाड़ों की अपनी महिमा है। महाकुंभ में राजसी स्नान के दौरान ये अखाड़े दिखाई देते हैं।
प्रयाग की धरती पर लगने वाला महाकुंभ क्यों है खास
चार जगहों पर लगने वाले महाकुंभ में सबसे ज्यादा महत्व प्रयागराज को दिए जाने पर उन्होंने कहा है कि जिन चार जगहों पर अमृत कलश छलका, वहां महाकुंभ शुरू हुआ। प्रयागराज की खास बात यह है कि यहां पर जमीन पर्याप्त है और यहां तीन प्रमुख नदियों का संगम होता है। जिसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश की धरती पावन है, यहां पर भगवान के अवतार ने जन्म लिया।