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लोकसभा चुनावः हिंसक टकराव के बाद क्या भगवा ब्रिगेड वामपंथ के आखिरी ‘किले’ में सेंध लगा पाएगी?

संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या का सियासी लाभ भाजपा को है मिलने की उम्मीद
सबरीमला मामले में केरल सरकार के रुख से हिंदुओं का भरोसा टूटा
केरल में पीएम मोदी की सफल रैली से भाजपा की लोकप्रियता में बढ़ोतरी के मिले संकेत

May 07, 2019 / 08:14 am

Dhirendra

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नई दिल्ली। भारत में वामपंथ शासित एक मात्र राज्य (केरल) में प्रभावी दस्तक देने की तैयारी को लेकर भाजपा और भगवा ब्रिगेड का प्रयास 2014 के मोदी लहर से ही जारी है। इसके बावजूद भगवा ब्रिगेड की दूरगामी रणनीति पर न तो किसी मीडिया एजेंसी ने गौर फरमाया और न ही वहां के राजनीतिक दलों ने। लेकिन पिछले पांच साल से भगवा ब्रिगेड की ओर से केरल में जारी एक तरफा प्रयासों का असर अब दिखाई देने लगेे हैं। यही वजह है कि इस बार लालगढ़ में सियासी हवा बदली हुई है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद से इस बात की संभावना ज्यादा है कि जो काम दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग पिछले 71 वर्षों में नहीं कर पाए वो इस बार कर दिखाएंगे और केरल में पहली बार कमल खिल सकता है।
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केरल में भाजपा को गंभीरता न लेने की है सियासी परंपरा

हालांकि आज भी यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि कम्युनिस्ट शासित एक मात्र राज्य में भाजपा की दमदार तरीके से 23 मई को उभरकर सामने आएगी या नहीं। क्योंकि केरल की सभी 20 संसदीय सीटों पर मतदान होने के बाद से ईवीएम में प्रत्याशियों की तकदीर बंद है। 23 मई को मतगणना के बाद ही साफ होगा कि आगामी वर्षों में दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की भूमिका क्या होगी? वर्तमान में भाजपा का एक भी प्रतिनिधि केरल से लोकसभा में नहीं है। यही कारण है कि भाजपा भले ही केरल में लोकसभा की सभी 20 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है लेकिन क्षेत्रीय दल इस बात को गंभीरता से नहीं लेते।
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स्वयंसेवकों की हत्या ने हिंदुओं को किया एकजुट

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की सीपीएम कार्यकर्ताओं द्वारा हत्या और जांच एजेंसियों की नजर में संदिग्ध मुस्लिम संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की बढ़ती गतिविधियों केे बाद से केरल मेंं हिंदूवादी संगठनाेें सकारात्मक सोच बनाना आरंभ कर दिया है। 2018 और 2019 के चुनाव में सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जिस प्रकार से वाम लोकतांत्रिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के नाम पर प्रभावी कार्रवाई और दमनचक्र चलाया वो हिंदुओं को एकजुट करने में अहम साबित हुआ। पहली बार भाजपा इस मुद्दे पर मुखर रूप से सामने आई। इससे वहां पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। पहली बार वहां के हिंदुओं को लगा कि केरल में उनकी कोई सुध लेने वाला है।
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ध्रुवीकरण के लिए वाम की नीतियां जिम्मेदार

फिर वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की किसी भी हालत में सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश को सुनिश्चित करने की नीति ने लोगों को स्वतः भाजपा से जोड़नेे का काम काम किया। सरकार द्वारा जन विरोधी कार्रवाई के विरुद्ध जनता में एक माहौल बना कि वाम सरकार केवल हिन्दुओं के आराध्य देवों के मंदिरों और स्थलों पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को बहाना बनाकर कार्रवाई कर रही है।
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भाजपा अब नहीं रहीं अछूती पार्टी

बता दें कि अभी तक केरल की राजनीति मे जनता के सामने दो ही विकल्प थे, पहला, संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा। हर चुनाव में जनता को इन्हीं दोनों विकल्पों को बारी बारी से चुनना पड़ता था। परन्तु सबरीमला की घटना ने भाजपा की उपस्थिति को और मजबूत कर दिया। 2014 से 2019 तक के कालखंड में केरल की राजनीति में भाजपा अछूती पार्टी नहीं रह गई है। 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के एक विधायक को चुनकर वहां की जनता ने भाजपा की राजनीति के लिए एक उर्वरा भूमि तैयार करने का काम तो कर ही दिया है।
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राहुल की एंट्री से ऐन मौके पर ध्रुवीकरण को मिला बढ़ावा

राहुल गांधी के मुस्लिम बहुल वायनाड छेत्र से चुनाव लड़ने की वजह से केरल में ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिला। राज्य का बच्चा-बच्चा जानता है कि वायनाड में मुस्लिम समर्थन के कारण राहुल का जीतना तो तय है। राज्य में यूडीएफ का मुख्य प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद वायनाड में एलडीएफ को तीसरे स्थान से ही संतुष्ट होना पड़ेगा। यद्यपि यहां से भाजपा को बहुत अधिक सफलता मिलने की गुंजाईश तो नहीं दिखाई देती लेकिन वायनाड में भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी बनने की उम्मीद पूरी है। भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के उम्मीदवार तुषार वेल्लाप्पिल्ली राहुल गांधी के विरुद्ध मैदान में हैं।
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त्रिकोणीय मुकाबला

केरल में 2014 में यहाँ सीधी लड़ाई एलडीएफ और यूडीएफ के बीच थी। भाजपा को किसी सीट पर जीत तो नहीं हासिल हुई थी परन्तु उसने 7 प्रतिशत मत प्राप्त कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। इस बार का चुनाव त्रिकोणीय है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि केरल में इस बार के चुनाव में परिस्थितियां बदल चुकी हैं। भाजपा को 20 में से 2 से 5 सीटों जीत की उम्मीद है। भाजपा ने इस बार 16 उम्मीदवार उतारे हैं और उसके सहयोगी दलों ने बीडीजेएस और टीएलकेसी 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
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एलडीएफ से टूटा हिंदुओं का भरोसा

राजनीतिक विश्लेषक यह कहने से नहीं चूकते कि सबरी मलय मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर जिस तरह से सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को लागू करने के लिए नृशंस कार्यवाही की और हजारों शान्तिपूर्ण आन्दोलनकारियों को जेल में डाल दिया उससे सरकार की सेकुलरिटी पर से यहाँ के हिन्दुओं का विश्वास उठने लगा है।
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पीएम की लालगढ़ में रैली से मिले बदलाव के संकेत

जहा तक सियासी बदलाव की बात है किा इसका उदाहरण 18 अप्रैल को तिरुवनंतपुरम में आयोजित भारतीय जनता पार्टी की जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुनने के लिए लाखों की भीड़ एकत्र होना अपने आप में एक आश्चर्यजनक घटना माना गया। पीएम मोदी की रैली की सफलता को इस बात का उदाहरण भी माना जाता है कि राज्य में भाजपा की राजनीतिक पैठ बन चुकी है। प्रधानमंत्री ने बड़े ही साफगोई से कहा कि सबरीमाला का मुद्दा भावनात्मक और हमारी परंपरा से जुड़ा हुआ है। इसका असर चुनाव परिणाम में दिख सकता है।
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