जम्मू-कश्मीर: पीडीपी-भाजपा गठबंधन में दरार, इन समीकरणों पर काम कर सकती हैं महबूबा
1- सियासी जमीन खाने का खतरा
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टियां हैं। इससे पहले भी उमर अबदुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके थे। ऐसे में उमर अबदुल्ला का महबूबा से हाथ मिलाना कोरा सत्ता का लालच माना जाता, जिससे राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस की छवि को झटका लग सकता था।
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2- आलोचना के बाद जाने का विकल्प नहीं
महबूबा से हाथ न मिलाने के पीछे एक कारण यह भी था कि चुनाव के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के निशाने पर कोई नहीं, बल्कि पीडीपी और भाजपा ही थे। ऐसे में वे जिस दल की आलोचना के सहारे वह सत्ता में आने के ख्वाब संजो रहे थे फिर उसी दल के साथ सत्ता में आना उसकी किरकिरी करा सकता था।
3- क्यों पहने कांटों का ताज
दरअसल, जम्म-—कश्मीर में गठबंधन टूटने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी रहा कि पीडीपी के शासनकाल में राज्य अधिकांश समय अशांत बना रहा। बुरहान वानी एनकाउंटर मामले के बाद तो जैसे राज्य के हालात बद से बदतर हो गए। ऐसे में पीडीपी के साथ जाना उमर अब्दुल्ला के लिए कांटों का ताज पहनने जैसा होता।
4- महागठबंधन से बाहर आना गलत कदम!
इसकी बड़ी वजह यह भी है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस यूपीए का घटक दल रही है। वह कांग्रेस ही थी जिसने 2008 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस का सपोर्ट किया था। कांग्रेस के सपोर्ट से ही उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने थे। अब जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस 2019 में लोकसभा चुनाव को लेकर बने महागठबंधन का भी हिस्सा है तो ऐसे में आम चुनाव से पहले उसका पीडीपी के साथ जाना गलत कदम हो सकता है।
उमर अब्दुल्ला के पीडीपी के साथ न आने का एक कारण यह भी है कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन राज्य में आधा कार्यकाल पूरा कर चुका है। ऐसे में केवल आधे कार्यकाल के लिए सत्ता में आना नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता था।