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24 फरवरी 1924 को चाईबासा के एक आदिवासी परिवार में जन्मे सुंबरुई ने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अभियान छेड़ा था। हालांकि उनकी सियासी पारी 1967 में झारखंड पार्टी से शुरु हुई। बताया जाता है कि जब बिहार में दारोगा प्रसाद राय की सरकार थी तो सुंबरुई ने एक बस कंडक्टर के लिए बहुत कदम उठाया था। उस समय दारोगा राय की सरकार झारखंड पार्टी के 11 विधायकों की सपोर्ट से चल रही थी। तभी बिहार राज्य परिवहन में कार्यरत एक आदिवासी कर्मचारी को हटा दिया गया था। इस बात की जानकारी जब सुंबरुई को मिली तो वह इस बात से खासे नाराज हुए और इसके लिए मुख्यमंत्री दारोगा राय से मिलने पहुंच गए, लेकिन सीएम कार्यालय में उनकी बात पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। बस फिर क्या था सुंबरुई ने सरकार से अपना हाथ खींच लिया। दारोगा राय की सरकार के बाद राज्य में कर्पूरी ठाकुर की सरकार सत्ता में आई। यह सुंबरुई की जिद ही थी कि उनको कर्पूरी सरकार में परिवहन मंत्री बनाया गया। मंत्री बनते ही सुंबरुई ने सबसे पहले बस कंडक्टर का निंलबन वापस लिया और फिर से सेवा का मौका दिया।
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हालांकि सुंबरुई केवल 7वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाए थे, बावजूद इसके उनको कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा, संथाली, बांग्ला व ओड़िया भाषा की उनको अच्छी जानकारी थी। उनके बारे में एक चर्चा यह भी है उन्होंने 58 शादियां की थी।