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अब मनचाही भाषा का कर सेकेंग चयन
नई शिक्षा नीति के संशोधित मसौदे में भाषाओं को अनिवार्य नहीं किया गया है। अब छात्र माध्यमिक स्कूल स्तर पर अध्ययन के लिए विकल्प के रूप में चुन सकते हैं। मसौदा नीति के खंड 4.5.9 में संशोधनों को किया गया है। इससे पहले के जिस मसौदे पर विवाद हो रहा था उसमें गैर हिंदी राज्यों में हिंदी भाषा की शिक्षा को अनिवार्य बनाने का सुझाव था।
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विवाद हुआ तो बदला फॉर्मूला
तीन भाषाओं के अध्ययन की वकालत करते हुए संशोधित संस्करण का अब शीर्षक ‘त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापन’ है और इसमें छात्र के अध्ययन वाली भाषा को सटीक तौर पर नहीं बताया गया है। यह सामान्य रूप से बताता है कि छात्र के पास तीन भाषा पढ़ने का विकल्प होगा, जिसमें से एक भाषा साहित्यिक स्तर पर होगी। इससे पहले इसे ‘भाषाओं के पसंद में लचीलापन’ शीर्षक दिया गया था।
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नए और पुराने मसौदे में अंतर
एचआरडी मंत्रालय की वेबसाइट पर अब उपलब्ध मसौदा नीति के संशोधित संस्करण में कहा गया है कि लचीलेपन के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जो छात्र तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं, वे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं। वहीं पहले के मसौदे की सिफारिशों में कहा गया था कि छात्र तीसरी भाषा का विकल्प चुन सकते हैं, जिसे वे कक्षा 6 में पढ़ना चाहते हैं। इन दो भाषाओं में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी व अंग्रेजी शामिल होगी।
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नया मसौदा आते ही हुआ विवाद
एनईपी का मसौदा शुक्रवार को मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए जाने के साथ ही विवाद शुरु हो गया था। द्रमुक, एमडीएमके, कांग्रेस व कमल हासन की अगुवाई वाली मक्कल निधि मैय्यम सहित तमिलनाडु की सभी विपक्षी पार्टियों ने सिफारिशों की निंदा की। यूपीए के सहयोगी और सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने कहा कि वह द्वि-भाषा फार्मूले को जारी रखेंगी, जो हिंदी शिक्षण को अनिवार्य नहीं बनाता। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को हिंदी के अनिवार्य शिक्षण को गैर हिंदी भाषी राज्यों पर ‘क्रूर हमला’ बताया।