बताया जाता है कि जब भगवान शिव (
Lord Shiva ) देवी सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, उस वक्त भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को 52 टुकड़े किए। बताया जाता है कि देवी सती का हृदय देवघर में ही गिरा था। मान्यता के अनुसार, देवी-देवताओं ने उस अंग का अंग्नि संस्कार यहीं पर किए थे। यही कारण है कि इस स्थान को चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है।
कहा तो ये भी जाता है कि जहां पर देवी सती का हृदय गिरा था, वहीं पर बाबा बैद्यनाथ की स्थापना की गई है। यहा के श्मशान को महाश्माशान का दर्जा दिया गया है। तंत्र मार्ग में भी देवघर को काफी महत्वपूरेण माना गया है। बताया जाता है कि आज तक कोई भी तांत्रिक यहां अपनी साधना पूरी नही कर सका है। शक्तिपीठ होने के कारण इसे भैरव स्थान भी माना गया है।
कैसे हुआ शिव-शक्ति का मिलन पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने हिमालय पर कठोर तप किया। उसने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक-एक करके अपने सिर को काटते जा रहा था। जैसे ही उसने 10वां सिर काटना चाहा, भगवान शिव प्रकट हो गये और उससे वर मांगने को कहा। कथा के अनुसार, रावण ने भगवान शिव से ‘कामनालिंग’ लंका ले जाने का वर मांगा। भगवान शिव ने रावण को ‘कामनालिंग’ ले जाने का वर दे दिया लेकिन शर्त रख दिया कि वह रास्ते में जमीन पर नहीं रखेगा। अगर जमीन पर रख दिया तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगे।
देवघर में विराजमान हो गये भोलेनाथ जैसे ही इस बात की जानकारी लगी रावण ‘कामानलिंग’ लेकर लंका जा रहा है, सभी देवता चिंतित हो गए और विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने देवताओं की बात सुन एक माया रची और वरुण देव को आचमन के जरिये रावण के पेट में घुसने को कहा। रावण जब याचमन कर भगवान शिव को लंका ले जाने लगा तो विष्णु की माया के कारण देवघर के पास उसे लघुशंका लग गई।
कथा के अनुसार, रावण को रोक पाना मुश्किल हो रहा था। उसी दौरान उसने एक ग्वाले को देखा। ग्वाले को देखने के बाद रावण ने शिवलिंग को थोड़ी देर को पकड़ने को कहा और लघुशंका के लिए चला गया। कहा जाता है कि रावण कइ घंटों तक लघुशंका करता रहा, जो आज भी वहां एक तालाब के रुप में मौजूद है। इधर, ग्वाला रूप में खड़े भगवान विष्णु ने शिवलिंग वहीं पर रखकर स्थापित कर दिया।
रावण जब लौटा तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है। उसके बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने की कई बार कोशिश की, लेकिन उठा नहीं सका। उसके बाद रावण ने गुस्से में शिवलिंग को अंगूठे से धरती के अंदर दबा दिया और लंका चला गया। बताया जाता है कि तब से ही यहां पर शिवलिंग स्थापित है, जिसे ‘कामनालिंग’ के नाम से जाना जाता है।