इस अखण्ड दीप के साथ वेदों की जननी मां गायत्री की एक मनमोहक मूर्ति भी स्थापित है, जिसके सामने बैठकर साधक निरंतर गायत्री महामंत्र का जप वर्षों से करते आ रहे हैं। इसलिए इसे स्वयं सिद्ध दीप माना जाता है। जो भी व्यक्ति इसका दर्शण करते हुए कवेल 11 बार गायत्री महामंत्र का उच्चारण करता है उसकी जटील से जटील समस्याओं का समाधान होने के साथ मनवाछिंत इच्छाएं पूरी हो जाती है।
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आज से लगभग 94 साल पहले सन 1926 में हरिद्वार स्थित गायत्री तीर्थ शांतिकुंज आश्रम के संस्थापक युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा ने इस अखण्ड दीप को गाय के घी से प्रज्वलित कर, इसी के सामने बैठकर गायत्री महामंत्र का जप करते हुए गायत्री के 24 महापुरश्चरण अर्थात 24 हजार करोड़ गायत्री महामंत्र जप का अनुष्ठान संपन्न किया था।
आचार्य श्री कहा करते थे की यह दीप सामान्य दीपक नहीं बल्की गायत्री तीर्थ शांतिकुंज की आत्मा है, जहां स्वयं मां गायत्री निवास करती है। इसके प्रकाश में बैठकर साधना करने से मन में दिव्य भावनाएं उठने लगती है। कभी किसी उलझन को सुलझाना हमारी सामान्य बुद्धि के लिए संभव नहीं होता, तो इस अखंड ज्योति की प्रकाश किरणें खुद ही उस उलझन को सुलझा देती है। मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण के पवित्र उद्देश्य से इस सिद्ध अखण्ड ज्योति के प्रज्वलन के साथ ही अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना भी की थी।
मन में पक्का इरादा हो तो क्या नहीं हो सकता
वसुधैव कुटुंब की भावनाओं को जगाने वाले इस दीपक के दर्शन से आज भी यहां आने वाले साधक, दर्शनार्थी मन, प्राण में महानता की ओर कदम बढ़ाने की उमंगे उठने के साथ उनकी अनगिनत इच्छाएं पूरी हो जाती है। इस अखण्ड ज्योति के ब्राह्ममुहूर्त में, दोपहर एवं संध्याकालीन तीनों समय जप, ध्यान-साधना नियमित रूप सम्पन्न होती है। सर्व मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले इस अखण्ड ज्योति के दर्शन के लिए हजारों लोग प्रतिदिन आते हैं और दिव्यता का अनुभव करते हैं।