पौष्टिक है सब्जी
बुजुर्गों व स्वास्थ्य महकमे से जुड़े लोगों के अनुसार वर्तमान में अधिक लाभ के लालच में रासायनिक खादों के जमकर उपयोग होने के कारण सब्जियों में रासायनिक छिड़काव किया जा रहा है, जो कि बीमारियों को न्यौता है। ऐसे में अभी तक कैर-सांगरी पूर्णत शुद्ध होने के कारण इसकी मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। कैर-सांगरी शुद्धता के साथ शत-प्रतिशत जैविक होने के कारण इनकी मांग प्रदेश से बाहर भी बढ़ने लगी है। कैर-सांगरी में विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन और कार्बोहाइड्रेट होता है। यह एंटी ऑक्सीडेंट भी है। स्वाद के साथ ये रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है।
अच्छे मिल रहे दाम
सीमावर्ती क्षेत्र में इस बार कैर सांगरी 100 से 200 किलो के भाव में बिकती है। बड़े शहरों तक पहुंचते-पहुंचते 400 से 500 किलो तक पहुंच जाती है। कैर- सांगर सुखा कर साल भर खाई जा सकती है। सूखी कैर-सांगरी के भाव 1200 से 1500 किलो तक पहुंच जाते हैं।
भाव आसमान छूते हैं
कैर बेचने बाजार में आए मंगलू व रामी का कहना है कि शीतला सप्तमी व अष्टमी के दिन सूखे कैर-सांगरी की मांग काफी रहती है। अमूमन इसके बाद आसमान छूते हैं। पचकूटा साग में सूखे कैर-सांगरी, कुमट (कुमटिया), काचरे, साबूत अमचूर, सूखे मेवे आदि डाले जाते हैं। हालांकि कैर-सांगरी मारवाड़ की ऐसी सब्जी है, जिसकी खेती नहीं होती। कैर की झाड़ियां ओरण एवं अंगोर में स्वत: उगती हैं, तो खेजड़ी कम पानी भी जिंदा रहती है।
कभी मुफ्त में मिलती थी कैर-सांगरी
मारवाड़ी परिवारों के लिए यह एक खास व्यंजन है। बिना किसी प्रयास के पैदा होने वाले कैर-सांगरी की सूखी सब्जियों से ग्रामीणों को रोजगार भी मिलने लगा है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष कैर-सांगरी को एकत्र कर बाजार तक पहुंचाते हैं, जिसके बदले उन्हें अच्छी कीमत मिल जाती है। शहरों में सूखे साग का व्यापार करने वाले व्यापारी भी अब अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। कुछ साल पहले तक गांवों में कैर-सांगरी मुफ्त में मिल जाती थी। अन्य प्रदेशों और विदेशों तक जाने से मारवाड़ी सूखे मेवे के भाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं।