मनोरोग चिकित्सक डॉ. दलजीतसिंह राणावत का कहना है कि पैरेंट्स बच्चों को गेम खेलने से रोकते हैं तो वे बुरा बर्ताव करते हैं। माता-पिता को समझना होगा कि सिर्फ समझाइश देकर लत नहीं सुधारी जा सकती। माता-पिता बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। उन्हें किसी एक्टिविटी में बिजी रखें। माता-पिता स्वयं बच्चों के सामने मोबाइल का एक्स्ट्रा उपयोग नहीं करें। यदि बच्चा एकदम मोबाइल नहीं छोड़ता है तो उसके लिए टाइम लिमिट तय करें। बच्चे के मोबाइल नहीं देखने पर उसे उपहार आदि देकर प्रोत्साहित करें।
कई गेमिंग कंपनियां मोटी राशि जीतने का लालच देकर चंगुल में फंसाती हैं। कई मामलों में गैम्बलिंग की लत बच्चों को बीमार कर रही है। वे गेमिंग एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं।
बच्चों में मोबाइल की लत खतरनाक हो गई है। ऑनलाइन गैम्बलिंग कंपनियों के झांसे में आकर कई बच्चे जुआ खेल रहे हैं। हर परिवार इसकी शिकायत करता है, लेकिन खुद से नहीं पूछा जाता कि ऐसा क्यों हुआ? जवाब है कि अभिभावकों के पास बच्चों के लिए वक्त नहीं है। दिनचर्या में बदलाव करें और बच्चों के साथ फिजिकल एक्टिविटी की शुरुआत करें। एटीएम कार्ड बच्चों की पहुंच से दूर रखें। बच्चों को इनडोर या आउटडोर गेम्स में बिजी करें। बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार अन्य गतिविधियों में शामिल करें। – डॉ. अंकित अवस्थी, विभागाध्यक्ष, मनोरोग विभाग, मेडिकल कॉलेज, पाली