नाम और नियम बदला, बजट का अता-पता नहीं
सत्ता परिवर्तन के साथ ही इसका नाम बदल गया था। भाजपा सरकार ने इंदिरा रसोई की जगह अन्नपूर्णा रसोई नाम कर दिया। इन रसोईयों में मिलने वाले भोजन की मात्रा को बढ़ाकर 450 ग्राम से 600 ग्राम कर दिया। एक थाली में एक व्यक्ति को चपाती, दाल, सब्जी, चावल, मिलेट्स (दलिया या बजारे की खिचड़ी) मिलती है। इस कारण
भजनलाल सरकार ने अनुदान राशि भी 17 रुपए से बढ़ाकर 22 रुपए कर दी थी, लेकिन, सरकार ने संस्थाओं को अनुदान राशि अब तक नहीं दिया है।
केस 1 पाली के नगर निगम परिसर में संचालित अन्नपूर्णा रसोई पर पिछले कई दिनों से ताला लगा है। खाने की उम्मीद से आ रहे लोगों को यहां से भूखा लौटना पड़ रहा। सरकार के ऑनलाइन पोर्टल पर लाभार्थियों की संख्या भी अपडेट नहीं है। जहां रसोई संचालित होती है, वहां बड़ा होर्डिंग जरूर लगा हुआ है। इसी तरह, शहर के शहर भगतसिंह आवासीय कॉलोनी के निकट एक और रसोई बंद है।
केस 2 बांगड़ कॉलेज रोड चुंगी नाके के पास अन्नपूर्णा रसोई स्वयं अन्न के अभाव से जूझ रही है। यहां रसोई चला रही संस्था आर्थिक संकट से गुजर रही है। दिसम्बर 2023 के बाद से इन्हें भुगतान नहीं मिला। संस्था के पदाधिकारी यूडीएच मंत्री से लेकर जिला प्रशासन तक पैसों के लिए चक्कर काट चुके हैं। यही हाल रहा तो अगले कुछ दिन में यह रसोई भी बंद हो जाएगी और लोगों को सस्ता भोजन नसीब नहीं हो पाएगा।
मंत्री-कलक्टर की चौखट पर काट रहे चक्कर
अन्नपूर्णा रसोई का संचालन गैर सरकारी संस्थाएं चला रही हैं। उन्हें जनवरी 2024 से पैसा नहीं मिला। पिछले दिनों पाली आए प्रभार मंत्री झाबरसिंह खर्रा से भी बजट की मांग की थी। जिला प्रशासन और अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के यहां भी दर्जनों चक्कर काट चुके हैं। चुंगी नाका पर रसोई चला रहे अनिल चौरड़िया ने कहा कि उसे नौ माह से पैसा नहीं मिला है। इससे उसकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई है। अब बिना पैसे ज्यादा दिन रसोई नहीं चला पाएंगे। वहीं, पाली नगर निगम की मेयर रेखा राकेश भाटी का कहान है कि सरकार से बजट नहीं मिला है। मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है कि अन्नपूर्णा रसोई के लिए शीघ्र बजट जारी करें, ताकि आम आदमी को सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जा सके। सरकार से पैसा मिलते ही शीघ्र भुगतान किया जाएगा।