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कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा
पहली बात तो यह कि पाकिस्तान भारत के साथ छद्म युद्ध लड़ रहा है। सीधे मुकाबले में कई बार मात खाने के बाद छद्म युद्ध का रास्ता अखतियार कर लिया है। इसमें आतंकवाद ( terrorism ) भी शामिल है। पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देकर भारत को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। जबकि भारत ने पाकिस्तान के साथ हमेशा से शांति वार्ता की पहल की है। पाकिस्तान की ओर से हर रोज कश्मीर घाटी में सीजफायर का उल्लंघन किया जाता है। इसके अलावा कश्मीरी युवाओं को जिहाद के नाम पर भटकाने की कोशिश करता रहा है।
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आतंकवादियों पर कार्रवाई न करना
भारत को अस्थिर करने वाले आतंकियों को पाकिस्तान पालता रहा है। कई ऐसे अवसर आए जब आतंकवादियों ने भारती धरती को रक्त रंजीत करने का काम किया। इसपर पाकिस्तान मौन रहकर अपना समर्थन आतंकवादियों को देता रहा। कई आतंकी संगठन पाकिस्तान की धरती में ही मौजूद है, जो पूरी दुनिया में आतंकवाद फैलाता है, लेकिन उसपर कार्रवाई नहीं की जाती है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर ( Masood Azhar ) अभी भी पाकिस्तान में बिना रोक-टोक के घूमता-फिरता है और सरकार का संरक्षण प्राप्त है, जबकि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल आतंकी घोषित किया है। इसके अलावे आतंकी हाफिज सईद ( Hafiz sayeed ) जो कश्मीर को लेकर हमेशा जहर उगलता रहता है, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। अलबत्ता हाफिज सईद ने तो राजनीतिक दल बनाकर अपने प्रत्याशियों को चुनाव भी लड़वाया।
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भारत के सबूतों को नकारना
भारत में हुए कई आतंकी हमलों में सीधे-सीधे पाकिस्तानी आतंकियों के हाथ होने के साक्ष्य मिले हैं। जब इन साक्ष्यों को पाकिस्तान की मांग पर उन्हें सौंपा गया तो अपर्याप्त सबूत मानकर आतंकियों पर कार्रवाई करने से इनकार करना पाकिस्तान की फितरत बन गई है। अभी हाल ही में जब 14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ ( CRPF ) जवानों पर हमला किया गया तो उसकी सीधी जिम्मेदारी मसूद अजहर ने ली। इमरान खान के आश्वासन के बाद की कोई साक्ष्य भारत दे तो वह सख्त कार्रवाई करेगा। इसपर भारत ने कई तरह के प्रमाण पाकिस्तान को सौंपे। लेकिन इसपर अमल नहीं किया गया और इमरान खान अपने वादे से मुकर गए। भारत के सबूत को अपर्याप्त बताकर नकार दिया।
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कश्मीर पर दोहरी नीति अपनाना
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान हमेशा से दोहरी नीति अपनाता रहा है। बंटवारे के बाद जब यह विवाद उत्पन्न हुआ तो दोनों देशों की ओर से यह माना गया कि इस मुद्दे को आपसी सहमति के साथ सुलझाएंगे और इसमें कोई भी तीसरा पक्ष शामिल नहीं होगा। हालांकि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को हर बार अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बनाने का प्रयास करता रहा है। कई ऐसे अवसर आए जब संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को पाकिस्तान ने उठाया और सुलझाने की मांग की। लेकिन हर बार भारत ने अपने तर्क और जवाब से पाकिस्तान को धाराशाई किया है।
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पाक सरकार पर सेना का वर्चस्व
पाकिस्तान में हमेशा से सरकार पर सेना का वर्चस्व रहा है। पाकिस्तान की आर्मी कश्मीर को अशांत करने के लिए अलगाववादियों के साथ आतंकी तत्वों की मदद करता है। पाकिस्तान की सरकार पर आर्मी का पूरा नियंत्रण है। किसी भी मामले में सरकार आर्मी के आज्ञा के बिना कोई फैसला या कदम नहीं उठा सकती है। लिहाजा यदि इमरान खान अपने वादे को पूरा करने के लिए भारत सरकार के साथ आगे बढ़े भी तो पाक आर्मी इसे होने नहीं दे सकती है। लिहाजा इमरान खान के पास कम स्कोप है कि वह कश्मीर समस्या के समाधान की ओर बढ़ सके।
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निष्कर्ष: दरअसल, इमरान खान चाहे भी तो कश्मीर समस्या के समाधान के लिए आगे नहीं बढ़ सकता है। हालांकि अपने एक बयान मे इमरान खान ने यह बात जरूर कही थी कि 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की सरकार जीत कर फिर से सत्ता में आती है तो कश्मीर समस्या का समाधान जल्द हो सकता है। बहरहाल, इमरान खान का दावा कितना हकीकत में बदल पाता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। पर मौजूदा समय में नरेंद्र मोदी की सरकार ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद और वार्ता दोनों साथ-साथ नहीं चल सकता है, लिहाजा भारत-पाक के बीच द्विपक्षीय वार्ता बंद है। अब नए सिरे से वार्ता शुरू करने के लिए इमरान खान को आतंकवादियों पर कार्रवाई कर पहल करनी पड़ेगी।
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