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जीरो वेस्ट दिवसः हर मोर्चे पर जन-जन को निभानी होगी भागीदारी

1st अंतरराष्ट्रीय ‘जीरो वेस्ट’ दिवस: 30 मार्च
पृथ्वी को बचाना है तो उठाने होंगे चौतरफा कदम
हमें अपनी धरती को बचाने के लिए पर्यावरण के संरक्षण की, खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने की और मानव स्वास्थ्य को सुधारने की जरूरत है। ‘जीरो वेस्ट’ की दिशा में अब चौतरफा पहल ही समाधान है।

Mar 30, 2023 / 10:36 pm

Patrika Desk

जीरो वेस्ट दिवसः हर मोर्चे पर जन-जन को निभानी होगी भागीदारी

जीरो वेस्ट दिवसः हर मोर्चे पर जन-जन को निभानी होगी भागीदारी

डॉ. विवेक एस. अग्रवाल
संचार और शहरी स्वास्थ्य विशेषज्ञ
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संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर पहली बार पूरे विश्व में 30 मार्च को अंतरराष्ट्रीय ‘जीरो वेस्ट’ यानी शून्य अपशिष्ट दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन विभिन्न स्तरों पर अपने शहर, गांव इत्यादि को अपशिष्ट मुक्त बनाने के संकल्प लिए जाएंगे। बहुत से आयोजन इस दिवस के उपलक्ष्य में सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर किए जाएंगे। उद्देश्य एक ही होगा, जनसाधारण में अपशिष्ट मुक्त शहर की धारणा के बारे में चेतना जागृत करना।
यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो प्रतिदिन लगभग 225 करोड़ टन कचरे का उत्पादन होता है, उसमें से लगभग 3 प्रतिशत यानी 6.5 करोड़ टन अकेले भारत में उत्पन्न होता है। वैश्विक स्तर पर इसमें से 93 करोड़ टन अपशिष्ट खाद्य पदार्थ का तथा 4 करोड़ टन प्लास्टिक का अवयव होता है। यदि विगत 10 वर्षों के आंकड़ों का आकलन किया जाए तो प्रतिवर्ष कचरा उत्पन्न होने की वृद्धि दर 5 से 6 प्रतिशत पाई जाती है और इसी अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक वैश्विक कचरा उत्पादन लगभग 388 करोड़ टन के स्तर तक पहुंच जाएगा। इसी चिंता के रहते 14 दिसंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा ने तुर्की व 105 अन्य देशों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए सन् 2023 से प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को अंतरराष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया। इस दिवस के वृहत्तर उद्देश्य के रूप में सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल (एसडीजी) 11 एवं 12 को प्रभावी रूप से हासिल करना एवं कचरा उत्पादक अर्थात् हर जन की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना है। लक्ष्य 11 के तहत ‘सस्टैनबल’ शहर एवं लक्ष्य 12 के तहत उत्तरदायी उपभोग को प्राप्त करना है, जो कि जन भागीदारी के बिना असंभव है।
वर्तमान स्थिति तो यह है कि हर मिनट महासागरों में एक ट्रक भार के समकक्ष प्लास्टिक विभिन्न रूपों में चला जाता है, जो घूम-फिर कर हमारे शरीर में पुन: प्रविष्ट कर अनेकानेकस्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है तथा जलीय जीव-जंतुओं की मृत्यु का कारण भी बनता है। इसी प्रकार यदि कार्बन उत्सर्जन के पैमाने पर देखें तो कुल खाद्य अपशिष्ट विश्व के तीसरे सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले राष्ट्र के समकक्ष दिखेगा। हालात ये हैं कि पूरे विश्व में लगभग 55 प्रतिशत अपशिष्ट का ही प्रबंधन हो पा रहा है और आधुनिक युग का परिचायक ई-वेस्ट तो 25 प्रतिशत से भी कम प्रबंधित है।
अकेले भारत में प्रतिवर्ष 1250 हेक्टेयर से अधिक भूमि कचरे के दबाव से ढक जाती है और यह सब इसी रफ्तार से जारी रहा तो एक दिन रहने की भी जगह नहीं बचेगी। अत: यह समय की मांग है कि हर जन, एक कचरा उत्पादक के रूप में अपने दायित्व को समझे, किसी भी वस्तु का उसके जीवनकाल के अंत तक उपयोग करे एवं तत्पश्चात् भी उसके पुन: उपयोग एवं पुन: प्राप्ति हेतु आवश्यक कदम उठाए। उपभोक्तावादी समाज को इस दिवस के माध्यम से स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि कचरा उत्पादन न सिर्फ आर्थिक रूप से अपितु सामाजिक रूप से भी और पर्यावरण के लिए भी आघात पैदा करता है। हमारे द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट से जल, जमीन एवं वायु तीनों प्रकार का प्रदूषण होता है जो कि आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे का संकेत है।
भारत के संदर्भ में उक्त दिवस की महत्ता अत्यधिक है और इस ओर वर्तमान सरकार का अत्यधिक जोर भी है। सन् 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत से लेकर वर्तमान में क्रियान्वित हो रहे स्वच्छ भारत अभियान शहरी 2.0 तक हर वर्ष ठोस कचरा प्रबंधन और उसके प्रति नवाचार, जन भागीदारी तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्त्व दिया गया है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्लासगो में आयोजित ‘सीओपी-26’ में ‘पर्यावरण के लिए जीवनशैली’ (लाइफस्टाइल फॉर इनवायरनमेंट) पर सम्पूर्ण विश्व का ध्यान आकृष्ट किया था।
इन सबके बावजूद वर्तमान में प्रचलित कचरा प्रबंधन व्यवस्था अधिकांश शहरों में कूड़े के विस्थापन तक ही सीमित है। कचरा प्रबंधन में प्रचलित ‘निम्बी सिंड्रोम’ (नॉट इन माइ बैकयार्ड – मेरे अहाते में नहीं) अब वार्ड, जोन और शहर स्तर पर तब्दील हो गया है। आवश्यकता है एक समेकित/एकीकृत कचरा प्रबंधन की, ताकि उत्पन्न अपशिष्ट को पृथक-पृथक एकत्रित करते हुए समुचित उपयोग किया जा सके, अन्यथा यह विस्थापन की प्रक्रिया यों ही जारी रहेगी और कार्बन बचत की जगह अधिकाधिक उत्सर्जन होगा। शहरों को विकेन्द्रित प्रणाली के उन्नयन हेतु दूरगामी आयोजना विकसित करनी होगी ताकि दूरदृष्टि के साथ हर कण का उपयोग हो।
वैसे भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अपशिष्ट नामक कोई वस्तु है ही नहीं। हमारे यहां आदिकाल से हर वस्तु का अंतिम कण और क्षण तक उपयोग किया जाता रहा है जिसे हम कालांतर में भूल गए हैं और कचरे के अम्बार खड़े कर दिए हैं। हमारी यही प्रवृत्ति भविष्य की त्रासदी का संकेत दे रही हैं। ‘अंतरराष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस’ की बेहतर परिणति समस्त जन द्वारा अपरिग्रह के सिद्धांत को जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाने से संभव हो पाएगी। हमें स्वयं पर अंकुश रखना होगा तभी बेहतर वातावरण प्राप्त होगा।

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