डेमोक्रेटिक पार्टी के दुर्भाग्य से पिछले चार साल में राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन उन दृष्टिकोणों को अमलीजामा पहनाता हुआ नजर नहीं आया जिनका दावा वह करता रहा है। दुनिया में चल रहे दो-दो युद्धों (गाजा और यूक्रेन) को रोकने की दिशा में भी बाइडन निष्प्रभावी रहे। ट्रंप का सामान्यत: डेमोक्रेट समर्थक समझी जाने वाली अल्पसंख्यक आबादी को बड़ी संख्या में आकर्षित करना अमरीका की घरेलू राजनीति में बड़ा शिफ्ट है। भारतवंशी डेमोक्रेट कमला हैरिस को बाइडन प्रशासन का हिस्सा होने का खमियाजा भी चुकाना पड़ा। जिन गुणों और मूल्यों का वह प्रतिनिधित्व करती रही थीं, बाइडन प्रशासन में आने के बाद उन पर धूल जमती चली गई। मतदाताओं के इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था कि जो वादे वह इस चुनाव में कर रही हैं, उन्होंने पिछले चार साल में उन वादों को क्यों नहीं निभाया। अमरीका के कथित आधुनिक समाज की जड़ों में मौजूद ‘वाइट सूप्रमेसी’ और पितृसत्तात्मकता की गांठें भी कमला के लिए कांटे साबित हुईं। भारतवंशियों का उन्हें समर्थन जरूर मिला, पर पाकिस्तानवंशी अमरीकी उनसे दूर छिटक गए। हां, यह चिंता का विषय होना चाहिए कि अमरीकी समाज में सर्वोच्च पद पर किसी महिला को विराजित करने में हिचक 235 साल बाद भी क्यों बरकरार है।
ट्रंप की यह जीत इसलिए भी विशेष है कि इस बार वह 2016 की तुलना में ज्यादा ताकत के साथ आए हैं। पिछले चुनाव के विपरीत इस बार ट्रंप ने इलेक्टोरल कॉलेज का तो विश्वास जीता ही है, बड़ी संख्या में रिपब्लिकन पार्टी के गवर्नर भी चुने गए हैं और सीनेट में भी पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। अमरीकी जनता ने बता दिया है कि अब कोई बहाना नहीं चलेगा। दुनिया में शांति लाने, अमरीका को फिर से महान बनाने, स्थानीय लोगों की आर्थिक हालत सुधारने, घुसपैठ रोकने और चीन की बढ़ती दादागीरी पर लगाम लगाने जैसे ट्रंप के कई वादे हकीकत में पूरे होते दिखने भी चाहिए।