scriptटकराव की बजाय ठोस कदम उठाने का वक्त | Time to take concrete steps instead of confrontation | Patrika News
ओपिनियन

टकराव की बजाय ठोस कदम उठाने का वक्त

– दिल्ली, लखनऊ, भोपाल और सूरत सहित देश के कई शहरों से कोरोना के शिकार लोगों के अंतिम संस्कार की दिल-दहला देने वाली फोटो-खबरें देख-सुनकर अश्रुधाराएं ही बह रही हैं।

Apr 17, 2021 / 06:05 am

विकास गुप्ता

टकराव की बजाय ठोस कदम उठाने का वक्त

टकराव की बजाय ठोस कदम उठाने का वक्त

देश में कोरोना के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सहित महाराष्ट्र्र, गुजरात, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में तो वायरस का विकराल रूप दिख ही रहा है, पहली लहर में इसकी रोकथाम में शानदार काम करने वाले राजस्थान जैसे राज्य भी विकट स्थिति के मुहाने पर हैं। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल और सूरत सहित देश के कई शहरों से कोरोना के शिकार लोगों के अंतिम संस्कार की दिल-दहला देने वाली फोटो-खबरें देख-सुनकर अश्रुधाराएं ही बह रही हैं।

अफसोस यह है कि एक ओर जहां अधिकतर आबादी बिना मास्क और परस्पर दूरी बनाए बिना घूम रही है, वहीं हमारे राजनेता और राजनीतिक दल चुनाव और वोटों के खेल में लगे हुए हैं। प. बंगाल का चुनाव तो जैसे राजनीतिक दलों के जीवन-मरण का प्रश्न हो गया है। यही हाल हरिद्वार कुंभ मेले का है। सबको ऐसा लगता प्रतीत होता है कि जीवन तो फिर आ जाएगा, लेकिन ये चुनाव अथवा कुंभ मेला फिर नहीं होगा। स्वयं कोरोना पीडि़त होने से पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का एक पैर पश्चिम बंगाल और दूसरा अपने प्रदेश में था। यही हाल केंद्र के अनेक मंत्रियों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों का रहा है। यह सवाल कोई किसी से नहीं पूछ रहा कि जब देश ने पहली लहर को अच्छे से काबू कर लिया तब हम टीका आने के बावजूद दूसरी लहर को ज्यादा रौद्र रूप धारण करने से क्यों नहीं रोक पाए? कारण हमारी प्राथमिकताओं का है। गुजरात हाईकोर्ट ने फरवरी में राज्य सरकार को आगाह किया, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। कोलकाता हाईकोर्ट देर से ही सही, अब चुनावी रैलियों में कोरोना गाइडलाइंस की अनदेखी पर चुनाव आयोग को आड़े हाथ ले रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट राज्य में किसी के बिना मास्क दिखने पर पुलिस पर अवमानना के मुकदमे की चेतावनी दे रहा है। एक महामंडलेश्वर की कोरोना से मृत्यु के बाद अखाड़ा परिषद संतों की कुंभ से वापसी पर विचार कर रही है। यह नौबत इसीलिए आई, क्योंकि जनता व सरकारों को समय पर, जो करना था वह नहीं किया।

हम अपनों का हक छोड़ 80 देशों को टीके भेजने की दरियादिली दिखाते रहे। और अब हमें जरूरत पड़ी, तो उन्हीं मुल्कों ने हमें कच्चा माल देने पर भी रोक लगा दी। अब, जब हर दिन 2 लाख नए मरीज आ रहे हैं, सीएम तक दोबारा पॉजिटिव हो रहे हैं, तब समय चिंता जाहिर करने या सलाह देने का नहीं, ठोस कदम उठाने का है। फिर चाहे राज्यों को समय पर रेमडेसिविर इंजेक्शन पहुंचाना हो या कोरोना के टीके। ऐसे हालात में भी केन्द्र-राज्यों के बीच टकराव की खबरें, लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

Hindi News / Prime / Opinion / टकराव की बजाय ठोस कदम उठाने का वक्त

ट्रेंडिंग वीडियो