यह विधेयक ‘आवश्यक’ वस्तुओं पर लागू होता है जो समूची जनसंख्या के दैनिक उपभोग की वस्तुओं को प्रभावित करेगी। हर दिन के खान-पान के रूप में थाली में शामिल वस्तुओं की उपलब्धता और कीमतों में स्थिरता महत्त्वपूर्ण है। भंडारण सीमित करना, व्यापारियों को अनावश्यक भंडारण और जमाखोरी से रोकता है। फसल कटाई के समय किसी उत्पाद की उपलब्धता में कमी या कीमतों के दमन से बचा जाना चाहिए। फसल कटाई के समय कीमतें कम होना किसानों की जायज चिंता है। दूसरी तरफ कीमतों में वृद्धि उपभोक्ताओं की परेशानी की वजह होनी चाहिए।
यह विधेयक बाजार का स्वरूप बिगाड़ देगा। यदि वैल्यू चेन के पारम्परिक स्वरूप पर गौर करें तो पाएंगे कि भंडारण और माल पर मालिकाना हक आपस में जुड़े हैं। बड़े गोदामों वाले आधुनिक भंडारण में निवेश पूंजीगत होता है और मालिकाना हक भी सार्वजनिक या निजी निवेश के जरिये पूंजी से जुड़ा है। भारी मात्रा में माल खरीदने के लिए जेब भरी होना जरूरी है। खरीदार वह फर्म भी हो सकती है, जिसका कि आधारभूत ढांचा है। खरीदार ऐसी सुविधाएं किराये पर भी दे सकता है। दोनों ही स्थितियों में भंडारण और नियंत्रण का केंद्रीकरण बढ़ सकता है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह भंडारण बफर स्टॉकिंग या सार्वजनिक वितरण के लिए नहीं है। यही समस्या है। क्या यह संभव है कि भंडारण इकाइयां केंद्रीकृत हों और माल का स्वामित्व विकेंद्रीकृत? हां, यदि व्यापार प्रबंधन के लिए इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज और वेयरहाउस (गोदाम) रसीद (डब्ल्यूआर) की व्यवस्था अपनाई जाए।
भंडारगृहों में पड़ा माल भी किसानों के पास रहेगा, इसकी संभावना न के बराबर है। क्योंकि अगले चक्र में उन्हें नकदी की जरूरत पड़ेगी। इसलिए विकेंद्रीकृत मॉडल में भी माल का स्वामित्व व्यापारियों और सटोरियों के हाथ में रहेगा, और आवश्यक वस्तुओं में सट्टेबाजी खतरनाक है। हालांकि आधुनिक, केंद्रीकृत भंडार गृह आधारित भंडारण सुविधाओं का विचार उत्तम है, जिसमें रखरखाव के गलत तरीकों, चूहों और अत्यधिक नमी के चलते नुकसान की गुंजाइश नहीं है, लेकिन भंडार प्रबंधन के लिए मजबूत नियामक ढांचे पर विचार भी जरूरी है। इन मसलों पर शेयर बाजार सबक देता रहा है, जैसे संपत्ति की सघनता, पारदर्शिता, संचालन व स्वामित्व के मानदंड और सूचीबद्ध करने की जरूरतें। ये सिद्धांत कमोडिटी मार्केट पर भी लागू हो सकते हैं – भंडारण सुविधाओं को डिपॉजिटरीज, डब्ल्यूआर को प्रतिभूति पत्र के समकक्ष माना जा सकता है। भंडारण, फॉरवर्ड पोजिशन, शॉर्ट सेलिंग और सट््टेबाजी पर सीमा लागू की जा सकती है।
किसान सट्टेबाजी के खेल का हिस्सा बनें या नहीं, यह उन पर छोड़ देना चाहिए, लेकिन प्राथमिक स्तर पर किसानों के हितों की रक्षा के रूप में नीतिगत व्यवस्था यह हो कि किसान अस्थिरता के फेर में न उलझें और उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य मिले। बाकी कीमतों की अस्थिरता के उपभोक्ताओं पर असर से भी सावधानी पूर्वक निपटना जरूरी है। सरकार को भंडारण की सीमा खत्म करने के बजाय भौतिक ढांचा विकसित करने और उसके चारों ओर नियमन का ताना-बाना बुनने पर निवेश करने की जरूरत है।
(लेखक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी, आइआइएमबी)