scriptशरीर ही ब्रह्माण्ड: यदा यदाहि धर्मस्य… | The body itself is the universe, Krishna | Patrika News
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शरीर ही ब्रह्माण्ड: यदा यदाहि धर्मस्य…

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: आत्मज्ञान होना ही वह निर्णायक मोड़ होता है जब आत्मा महन्मन की बाधा को पार करने के लिए छटपटाता है। तब आसुरी सम्पदाओं से उसका द्वन्द्व (देवासुर संग्राम) भयानक हो पड़ता है। व्यक्ति जितना अपना प्रयास तेज करता है, उतना ही विरोध- आक्रमण- माया की पकड़ आदि भी तेज होते जाते हैं। तब एक क्षण ऐसा आता है जब व्यक्ति समर्पण कर बैठता है। ईश्वर के आश्रित हो जाता है। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- यदा यदाहि धर्मस्य…

जयपुरSep 22, 2024 / 04:17 pm

Gyan Chand Patni

Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: “शरीर स्वयं में ब्रह्माण्ड है। वही ढांचा, वही सब नियम कायदे। जिस प्रकार पंच महाभूतों से, अधिदैव और अध्यात्म से ब्रह्माण्ड बनता है, वही स्वरूप हमारे शरीर का है। भीतर के बड़े आकाश में भिन्न-भिन्न पिण्ड तो हैं ही, अनन्तानन्त कोशिकाएं भी हैं। इन्हीं सूक्ष्म आत्माओं से निर्मित हमारा शरीर है जो बाहर से ठोस दिखाई पड़ता है। भीतर कोशिकाओं का मधुमक्खियों के छत्ते की तरह निर्मित संघटक स्वरूप है। ये कोशिकाएं सभी स्वतंत्र आत्माएं होती हैं।”
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की बहुचर्चित आलेखमाला है – शरीर ही ब्रह्माण्ड। इसमें विभिन्न बिंदुओं/विषयों की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। गुलाब कोठारी को वैदिक अध्ययन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्हें 2002 में नीदरलैन्ड के इन्टर्कल्चर विश्वविद्यालय ने फिलोसोफी में डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। उन्हें 2011 में उनकी पुस्तक मैं ही राधा, मैं ही कृष्ण के लिए मूर्ति देवी पुरस्कार और वर्ष 2009 में राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान से सम्मानित किया गया था। ‘शरीर ही ब्रह्माण्ड’ शृंखला में प्रकाशित विशेष लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें नीचे दिए लिंक्स पर.

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