Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: शरीर में न इच्छा है, न ही गति। इच्छा मन में होती है और गति प्राण में। शरीर कर्म करने का उपकरण मात्र है। पुरुष और प्रकृति ही इसमें दम्पती भाव में रहते हैं। प्रकृति भी जड़ रूप रहती है (अपरा)। पुरुष चेतनायुक्त है। उसे प्रकृति चला रही है। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- शरीर उपकरण : प्रकृति संचालक
जयपुर•Sep 13, 2024 / 10:03 pm•
Nitin Kumar
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