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patrika opinion अलगाववादियों को शह कनाडा के लिए ही खतरा

कनाडा सरकार के भारत विरोध पर अंकुश और वहां बसे भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने की जरूरत है। भारत को वहां जारी अलगाववादियों के खेल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद करनी चाहिए। भले ही व्यापार-वाणिज्य के मोर्चे पर थोड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, अब कनाडा के खिलाफ कड़े कदम उठाना जरूरी है।

जयपुरNov 10, 2024 / 09:20 pm

Gyan Chand Patni

भारत के साथ रिश्तों में तनातनी के बीच कनाडा की सरकार रह-रहकर भारतीयों के हितों पर असर डालने वाले फैसले कर रही है। विदेशी विद्यार्थियों के लिए स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम (एसडीएस) कार्यक्रम खत्म करना नई कड़ी है। इस कार्यक्रम के तहत विदेशी विद्यार्थियों को कुछ हफ्तों में वीजा मिल जाता था। अब उन्हें कई महीने इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि फैसला कई देशों के विद्यार्थियों पर लागू होगा, लेकिन बड़ा असर भारत पर पड़ेगा, क्योंकि यहां से सबसे ज्यादा विद्यार्थी पढ़ाई के लिए कनाडा जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, इस समय कनाडा में करीब 4.27 लाख भारतीय विद्यार्थी हैं। पिछले साल जून में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा ने भारत पर अतिरेकपूर्ण आरोप लगाकर रिश्तों में खटास घोलना शुरू किया था। तब से अब तक उसने रिश्तों में सुधार के कोई संकेत नहीं दिए। वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि कनाडा के फलने-फूलने में वहां बसे करीब 18.6 लाख भारतीयों का भी योगदान है।
दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भारत से रिश्ते बिगाड़ कर वह अपने देश का अहित कर रहे हैं। दरअसल, कई मुद्दों पर ट्रूडो अपनी लिबरल पार्टी में ही घिरे हुए हैं। वह सिख कार्ड खेलकर अगले साल होने वाला चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए वह खालिस्तानी अलगाववादियों की तरफदारी कर कनाडा के लिए खतरे की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं। इसी तरह का खतरनाक खेल कभी पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आतंकियों को शह देकर शुरू किया था। अब वही आतंकवाद पाकिस्तान के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। कनाडा के प्रमुख शहरों टोरंटो, वैंकूवर और सरे के बाद हाल ही खालिस्तानी प्रदर्शनकारियों ने ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर पर हमला किया। ट्रूडो सरकार ने ऐसी घटनाओं पर अंकुश के ठोस कदम नहीं उठाए। खालिस्तानी अलगाववादियों को भारत के खिलाफ जहर उगलने की खुली छूट देकर ट्रूडो कनाडा की लोकतांत्रिक और राजनयिक साख कमजोर कर रहे हैं। ये अलगाववादी कनाडा में रह रहे हिंदुओं के साथ सिखों के लिए भी परेशानी का सबब बन गए हैं।
कनाडा सरकार के भारत विरोध पर अंकुश और वहां बसे भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने की जरूरत है। भारत को वहां जारी अलगाववादियों के खेल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद करनी चाहिए। भले ही व्यापार-वाणिज्य के मोर्चे पर थोड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, अब कनाडा के खिलाफ कड़े कदम उठाना जरूरी है।

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