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पूर्व मुख्यमंत्री के हत्यारे को फांसी या माफी! SC ने राष्ट्रपति से की दो सप्ताह में फैसला लेने की गुजारिश

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए हुए हैं। अब उनकी मौैत की सजा बरकरार रहेगी या माफ होगी इस पर राष्ट्रपति को अगले दो सप्ताह में फैसला लेना है।

नई दिल्लीNov 18, 2024 / 12:22 pm

Anish Shekhar

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर फैसला लेने का आग्रह किया। बलवंत सिंह राजोआना 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए हुए हैं। राजोआना को करीब तीन दशक पहले हुई हाई-प्रोफाइल राजनीतिक हत्या में उनकी भूमिका के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप उनकी दया याचिका के लंबे समय से लंबित समाधान में तेजी लाने का प्रयास है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने राष्ट्रपति से दो सप्ताह के भीतर याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया। पीठ ने कहा, “आज विशेष रूप से मामले को रखे जाने के बावजूद भारत संघ की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। पीठ केवल इसी मामले के लिए बैठी थी।”
पीठ ने कहा, “पिछली तारीख को मामले को स्थगित कर दिया गया था ताकि संघ राष्ट्रपति कार्यालय से निर्देश ले सके कि दया याचिका पर कब तक निर्णय लिया जाएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मृत्युदंड की सजा काट रहा है, हम भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश देते हैं कि वे मामले को राष्ट्रपति के समक्ष रखें और उनसे आज से दो सप्ताह के भीतर इस पर विचार करने का अनुरोध करें।”

अगली सुनवाई 5 दिसंबर को

मामले की सुनवाई अब 5 दिसंबर को होगी। 25 सितंबर को शीर्ष अदालत ने राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था। पिछले साल 3 मई को शीर्ष अदालत ने उसकी मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी दया याचिका पर विचार कर सकते हैं।
31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री और 16 अन्य लोग मारे गए थे। एक विशेष अदालत ने जुलाई 2007 में राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी। राजोआना ने कहा है कि मार्च 2012 में उनकी ओर से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दया याचिका दायर की थी।

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