आमतौर पर परेड में सैन्य साजो-सामान व बैलिस्टिक मिसाइलों का प्रदर्शन करता होता आया है, परन्तु इस बार आर्टिलरी, दमकल और स्वास्थ्य प्रणाली को प्राथमिकता प्रदान की गई है। शासक किम जोंग उन ने परेड की सलामी जरूर ली, परन्तु राष्ट्र को संबोधित नहीं किया। किम जोंग उन पर देश की दयनीय स्थिति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का दबाव स्पष्ट दिखाई दिया।
अगस्त माह के अंत में जारी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएईए) की सालाना रिपोर्ट में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर चिंता का विषय माना गया है। गौरतलब है कि दिसम्बर 2018 से जून 2021 तक वहां परमाणु कार्यक्रम संचालन के संकेत नहीं थे, परन्तु जुलाई माह में उत्तर कोरिया ने प्योंगयांग स्थित योंगब्योन मुख्य परमाणु परिसर के 5 मेगावाट के रिएक्टर को पुन: शुरू करने के स्पष्ट संकेत मिले हैं। उक्त रिएक्टर में प्लूटोनियम का उत्पादन किया जाता है।
परमाणु एजेंसी ने हाई रिजोल्यूशन वाले वाणिज्यिक उपग्रहों से ली गई तस्वीरों, जीआइएस की 3-डी तकनीक और अन्य खुले माध्यमों से देश में जारी हर गतिविधि की निगरानी कर साक्ष्य संकलित किए हैं। आइएईए ने योंगब्योन परमाणु स्थल से कूलिंग वाटर की सतत निकासी, रेडियो केमिकल लेबोरेटरी के स्टीम प्लांट के संचालन से निकले अपशिष्ट के उपचार और रख-रखाव की गतिविधियों, न्यूक्लियर प्लांट स्थित सेंट्रीफ्यूज मशीनों के उत्सर्जन और वाहनों की निरन्तर आवाजाही के साथ-साथ लाइट वाटर रिएक्टर के निर्माण के लिए निर्माण सामग्री की आपूर्ति के पुख्ता साक्ष्य जुटाए हैं।
उल्लेखनीय है कि जनवरी 2021 में किम जोंग उन ने परमाणु हथियार फिर विकसित करने की घोषणा करते हुए कहा था कि उनके वैज्ञानिक अब छोटे आकार के सामरिक हथियारों और सुपर लार्ज हाइड्रोजन बम बनाने पर काम करेंगे। किम जोंग उन की घोषणा और आइएईए की हालिया रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उत्तरी कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र, अमरीका और उसके सहयोगी देशों के कड़े प्रतिबंधों के बावजूद अपने परमाणु कार्यक्रम को पुन: आरम्भ कर दिया है। वर्तमान में देश के नागरिक भुखमरी और मुफलिसी के भयावह दलदल में फंसे हुए हैं। परमाणु सम्पन्न होने की जिद ने उत्तर कोरिया को निहायत ही अकेला कर दिया है।
कोरोना के चलते उत्तर कोरिया ने अपनी सीमाओं को सील कर दिया, जिससे चीन के साथ भी उसका व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। बीते साल में भीषण गर्मी, अतिवृष्टि और चक्रवातों के चलते कृषि उत्पादों में अप्रत्याशित गिरावट दर्ज की गई। समग्र कारणों ने उत्तर कोरिया में गंभीर खाद्यान्न संकट पैदा कर दिया है। ऐसी परिस्थितियां वहां नब्बे के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद पैदा हुई थी। उस समय के शासक किम इल संग ने ऑर्डस मार्च (मुश्किल दौर) का नारा दिया था। इस छद्म राष्ट्रवाद के आवरण से वहां के तानाशाहों ने अपने शासन को नागरिक आंदोलनों से बचाया था। आधुनिक दौर में खाद्यान्न संकट किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी की बात है। अपने नागरिकों को भुखमरी से बचाने की बजाय किम जोंग उन परमाणु हथियारों का जुगाड़ कर रहे हैं, जो चिंताजनक है।