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Opinion : दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के हों ठोस उपाय

महिलाओं को संरक्षण व सुरक्षा देेने के लिए हमारे यहां कई कानूनी प्रावधान किए गए हैं। इसमें संदेह नहीं कि ये कानूनी सुरक्षा कवच महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन जब ऐसे ही किसी सुरक्षा कवच का दुरुपयोग होता दिखे तो चिंता होना स्वाभाविक है। बेंगलूरु के एक आइटी पेशेवर की […]

जयपुरDec 13, 2024 / 09:44 pm

harish Parashar


महिलाओं को संरक्षण व सुरक्षा देेने के लिए हमारे यहां कई कानूनी प्रावधान किए गए हैं। इसमें संदेह नहीं कि ये कानूनी सुरक्षा कवच महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन जब ऐसे ही किसी सुरक्षा कवच का दुरुपयोग होता दिखे तो चिंता होना स्वाभाविक है। बेंगलूरु के एक आइटी पेशेवर की आत्महत्या से जुड़ा मामला इन दिनों चर्चा में है क्योंकि उसने जो सुसाइड नोट छोड़ा है, उसमें अपनी अलग रह रही पत्नी के साथ-साथ ससुराल वालों पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। इस प्रकरण के बीच ही दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अदालतों को दहेज उत्पीडऩ के मामलों में कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि कहीं इसकी आड़ में पति के रिश्तेदारों को फंसाया तो नहीं जा रहा। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी जोड़ा कि घरेलू विवाद में कई बार पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है।
हालांकि दहेज प्रताडऩा को गैर जमानती अपराध बनाने का मकसद प्रताडि़त महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना रहा है। इसीलिए पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 498-ए (अब भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 85 और 86) में इस अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन इस कानूनी प्रावधान के दुरुपयोग को देखते हुए वर्ष 2010 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसमें बदलाव की जरूरत की बात कही थी। दुरुपयोग के बढ़ते मामलों के बीच सच यह भी है कि बड़ी संख्या में दहेज प्रताडऩा की शिकार महिलाओं को कानूनी प्रावधानों की वजह से न केवल न्याय मिला है बल्कि दहेज लोलुपों को सजा भी दी गई है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि दहेज के झूठे मामलों के कारण कई निर्दोष व्यक्तियों व उनके परिवारों को लंबे समय तक प्रताडऩा व सजा तक झेलनी पड़ती है। वे न केवल मानसिक प्रताडऩा का शिकार होते हैं बल्कि सामाजिक रूप से भी अलग-थलग हो जाते हैं। यों तो दहेज के झूठे मामले दर्ज कराने पर भी सजा का प्रावधान है, लेकिन कई कानूनी अड़चनों के बीच ऐसे मामले भी पीडि़़त पक्ष को तोड़कर रख देते हैं।
दरअसल, ऐसे मामलों में सबसे मजबूत भूमिका पुलिस जांच व बाद में न्यायपालिका की रहती आई है। लेकिन कुछ ऐसे मामलों में पुलिस और न्यायपालिका तक पर अंगुलियां उठने से नहीं चूकती। न्यायपालिका, सरकार और समाज सबको मिलकर इस समस्या के समाधान की राह तलाशनी होगी। यह समझना ही होगा कि कानून का दुरुपयोग निर्दोष लोगों को कष्ट तो देता ही है, वास्तविक पीडि़तों के लिए न्याय की राह भी मुश्किल करने वाला होता है। कानूनों को सही उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम बनाना और पात्र व्यक्ति को न्याय देना ही सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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