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आखिर इंश्योरेंस क्लेम की राशि में कटौती कैसे कर देती हैं कंपनियां

आर.के. विजयइंश्योरेंस कंपनी में पूर्व उप महाप्रबंधकइंश्योरेंस ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही जारी आंकड़ों के हवाले से प्रकाशित रिपोट्र्स के अनुसार वर्ष 2022-23 में 15 में से 11 निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने दावों की राशि का 75% से भी कम भुगतान किया। चार में से तीन सरकारी बीमा कंपनियों का रिकॉर्ड बेहतर […]

जयपुरDec 13, 2024 / 09:50 pm

Sanjeev Mathur


आर.के. विजय
इंश्योरेंस कंपनी में पूर्व उप महाप्रबंधक
इंश्योरेंस ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही जारी आंकड़ों के हवाले से प्रकाशित रिपोट्र्स के अनुसार वर्ष 2022-23 में 15 में से 11 निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने दावों की राशि का 75% से भी कम भुगतान किया। चार में से तीन सरकारी बीमा कंपनियों का रिकॉर्ड बेहतर रहा, जिन्होंनें 88 से 99% तक भुगतान किया। इसका अर्थ यह भी निकाला गया कि शेष राशि का भुगतान बीमाधारकों को करना पड़ा। गत सप्ताह यह मामला लोकसभा में भी उठाया गया था। अन्य उपलब्ध आंकड़े इस निष्कर्ष पर सवाल खड़े करते है, लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि दावों की राशि में आमतौर पर कटौती होती है। अहम सवाल यह है कि क्या ऐसी कटौती पॉलिसी की शर्तों के तहत वैध है? बीमा दावों का निपटारा बीमा पॉलिसी की शर्तों के तहत ही किया जाता है। दावों में अस्वीकृत राशि इन शर्तों के अनुसार अदेय राशि ही होनी चाहिए। उदाहरण के लिए पॉलिसी में यदि किसी मद विशेष जैसे मोतियाबिंद ऑपरेशन की अधिकतम सीमा 40,000 रुपए निर्धारित है तथा वास्तविक खर्च 50,000 रुपए है तो ऐसे में शेष राशि बीमाधारक ही वहन करेगा।
स्वास्थ्य बीमा उद्योग दावों में गैरवाजिब कटौतियों के लिए भी चर्चा में रहता है। वर्ष 2023-24 में बीमा लोकपालों को की गई कुल शिकायतों का 60.34त्न स्वास्थ्य बीमा से संबंधित था। स्वास्थ्य बीमा की कुल विचारणीय शिकायतों में 94.82% आंशिक कटौतियों अथवा दावों के पूर्ण निरस्तीकरण के खिलाफ थी। ऐसी कुल 20,500 शिकायतों में से 79.88% में लोकपाल ने बीमाधारकों के पक्ष में 160.21 करोड़ रुपए की अनुशंसा या अवार्ड पारित किए। जाहिर है, इन कटौतियों को गैरवाजिब माना गया। ऐसी कटौतियों के कई कारण हैं। बीमा कंपनियों अथवा टीपीए के कुछ कर्मचारी पूर्वाग्रहों के चलते अथवा पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव में ऐसा कर बैठते हैं। मुंबई के एक प्रसिद्ध अस्पताल में हार्ट सर्जरी के एक मामले में अनुमानित पांच ग्राफ्टिंग प्रोसेस के लिए पैकेज राशि इंगित की गई। कैशलेस स्वीकृति के बाद की गई सर्जरी में सात ग्राफ्टिंग करनी पड़ी। इन अतिरिक्त दो ग्राफ्ट्स के व्यय को बीमा कंपनी ने दावे से हटा दिया। ऐसी कटौती नितांत गैरवाजिब है।
तेजी से बढ़ते स्वास्थ्य बीमा व्यवसाय के संचालन में समय-समय पर काफी बदलाव हुए हैं। इरडा ने ऐसे मदों का वर्गीकरण करते हुए इनकी चार श्रेणियां बनाई हैं। इनमें पहली श्रेणी में वे मद हैं जो पॉलिसी में कवर नहीं होंगे, लेकिन बीमा कंपनियां चाहें तो इन मदों को भी कवर कर सकती हैं। बाकी तीन श्रेणियों में रूम-रेंट, संबंधित प्रोसीजर तथा इलाज की लागत शामिल माने जाएंगे। ये दिशा-निर्देश जारी करते हुए इरडा ने साफ तौर पर कहा था कि अस्पतालों द्वारा इन तीन श्रेणियों के मदों की लागत बीमित से वसूल नहीं की जाएगी। बावजूद इसके न केवल कई अस्पताल कर्मी बल्कि टीपीए तथा बीमाकर्मी भी पूर्व धारणा के चलते ऐसे कई मदों को दावे में स्वीकृत नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए बेंडेज तथा कॉटन की कीमत प्रोसीजर शुल्क में शामिल होने के बावजूद कई अस्पताल बीमित से इनकी कीमत वसूल लेते हैं। इससे बचने के लिए बीमा कंपनियों को संबंधित कर्मियों को सतत प्रशिक्षित करना होगा। साथ ही बीमाधारकों को पॉलिसी की शर्तों का अध्ययन करना होगा तथा दावों में की गई प्रत्येक अवैध कटौती का विरोध करना होगा।

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