लेकिन क्यों ? पता नहीं है किसी को। बस भेड़चाल जैसे चलते जा रहे हैं । पहले दादा फेंकते थे फिर पापा अब हम और इसके बाद हमारे बच्चे लेकिन किसी ने यह नहीं बताया ऐसा क्यों ? क्योंकि जबाब किसी के पास नहीं है । दरअसल, पुराने समय में व्यक्ति पूरी तरह नदी पर आश्रित था, पानी पीने से लेकर नहाने धोने तक । मुगलकालीन समय में दूषित पानी से बीमारियां फैली थीं, उस समय चांदी के सिक्के चलन में थे तो प्रत्येक व्यक्ति को चांदी का सिक्का नदी में डालने को बोला गया था ताकि पानी शुद्ध रहे । चांदी के सिक्के और चांदी के बर्तन में पानी पीने से कई बीमारियों से बच जाते हैं साथ ही राहत मिलती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है । जबसे स्टील , लोहा और क्रोमियम जैसी सस्ती धातु के सिक्के चलन में आये और उसके पहले देश को विदेशियों द्वारा लूटा गया तब से चांदी के सिक्के बंद हो गए । यानी अब सिक्कों का पानी में फेंका जाना अंधविश्वास और अशिक्षित होने की निशानी है । लेकिन शिक्षित व्यक्ति भी इससे अछूता नहीं, क्योंकि वजह जाने बिना वह बस सदियों से देखा देखी किये जा रहा है । वर्तमान सिक्के में 83 प्रतिशत लोहा और 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है ।
विशेषज्ञों का कहना है कि क्रोमियम एक जहरीली धातु है जो सीधे तौर पर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है । नदी , तालाब, झरनों आदि का जल दूषित हो चुका है । यह अब किसी भी उपयोग में लाया नहीं जाना चाहिए । वर्तमान में देश की नदियां अपने ही अस्तित्व के लिए लड़ रही हैं, वह कैसे किसी और का अस्तित्व बचा पायेगीं ? गांव देहात का आदमी आज भी इस सच से कोसों दूर है, उन्हें जागरूक करिये । नदी तालाब में फेंके जा रहे सिक्को पर सरकार द्वारा तुरंत ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए ताकि लोग आस्था के नाम पर जल प्रदूषण में भागीदार ना बनें, साथ ही भारतीय मुद्रा भी बर्बाद होने से बची रहे ।
जयति जैन