किसी भी विवादित
मामले पर सोशल मीडिया पर तुरंत न्याय की मांग की जाती है जो संभव नहीं है। इससे हमारी न्यायिक प्रक्रिया व जज पर भी प्रभाव पड़ता है। किसी मामले की सुनवाई लंबे समय तक चलती है और फैसला होता है। इसलिए सोशल मीडिया के जरिए दबाव बनाना ठीक नहीं है।
-लता अग्रवाल चित्तौडग़ढ़
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न्यायिक मामले अत्यंत ही संवेदनशील मामले होते हैं। ऐसे में इन मामलों को सोशल मीडिया से दूर रखा जाना चाहिए। कई बार सोशल मीडिया की दखलअंदाजी से अपराधियों को फायदा मिल जाता है। न्यायिक मामलों में, जब तक निर्णय न आ जाए, संवेदनशील मामलों की जानकारी गोपनीय रखी जानी चाहिए। फेक न्यूज और भ्रामक प्रचार को रोकने के लिए कड़े कानून और निगरानी तंत्र की जरूरत है। -डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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न्यायिक प्रक्रिया को सोशल मीडिया से बचाने के लिए वर्षों से लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाया जाए। रिक्त पदों पर जजों की नियुक्तियां की जाए। अनावश्यक टीका-टिप्पणियों से बचा जाए।
डॉ. मदनलाल गांगले, रतलाम, मप्र
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न्यायिक प्रक्रिया को सोशल मीडिया के प्रभाव से बचाने के लिए कानून की जरूरत है। जो कोई भी न्यायपालिका के खिलाफ अनर्गल बयान या तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर के सोशल मीडिया में पेश करता है उसके खिलाफ तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही न्यायाधीशों, वकीलों और न्यायिक कर्मचारियों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। -आशुतोष शर्मा, जयपुर
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न्यायिक प्रक्रिया को सोशल मीडिया के प्रभाव से बचाना आवश्यक है। मीडिया ट्रायल को रोकना होगा और फेक न्यूज के मामले में कड़ी कार्रवाई करनी होगी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाना आवश्यक है।
-हेमेंद्र कुमार, भरतपुर
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आधुनिक युग में सोशल मीडिया का हर क्षेत्र पर प्रभाव पड़ रहा है। न्यायपालिका यह विशेष ध्यान रखे कि उस पर सोशल मीडिया का प्रभाव नहीं पड़े। वह पक्ष-विपक्ष की दलीलों को सुनकर के अंतिम निर्णय दे। आम जन में भारत की न्यायपालिका की जो निष्पक्ष छवि बनी हुई है, वह बनी रहनी चाहिए।
-महेन्द्र कुमार बोस, गुड़ामालानी, बाड़मेर
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न्यायिक प्रणाली में एक पक्ष की जीत तो एक पक्ष की हार होना तय है। इसलिए जिसकी हार हो उसे हार को पचाना आना चाहिए और न्यायिक प्रणाली पर अनुचित टिप्पणियां करने से बचना चाहिए।
-प्रियव्रत चारण, जोधपुर