आज इस चर्चा के माध्यम से उसी मेरिये को व्यापक और स्वराज के दृष्टिकोण से सोच रहा हूं कि क्या हम आदिवासी अंचल के हर परिवार में, और तो और ग्रामीण अंचल के हर परिवार में सरकार के सहयोग से उस मेरिये को जला सकते हैं । जब रोशनी और ऊर्जा की बात आती है तो सुदूर क्षेत्रों को लेकर चिंता होती है। कभी यह अविश्वसनीय भी लगता था कि गांव – गांव , ढाणी-ढाणी और टापरे- टापरे, कभी रोशनी भी होगी, परंतु सरकार के कार्यक्रमों ने उसमें मजबूती दी और घर-घर बिजली पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हुआ। आज सुदूर अंचल में भी बिजली सरकार के सहयोग एवं प्रयासों से ही पहुंची है। इसके साथ ही बदलती तकनीक, पर्यावरणीय चिंता और तकनीकी विकास जैसे मुद्दे भी सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। क्यों न हम उस शक्ति के स्वराज को, उस ऊर्जा के स्वराज को, परिवार- परिवार, गांव – गांव , पंचायत- पंचायत तक पंहुचा दें और क्यों न हम उस ऊर्जा के व्यापार का विकेंद्रीकृत कर दें जिससे बड़े-बड़े उद्योगपति, बड़े-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान, जुड़े हुए हैं।
हम उस ऊर्जा के व्यापार के एकाधिकार को उस गरीब परिवार तक पहुंचाएं। जिस प्रकार से सरकारों ने बिजली के संसाधनों का विकास कर सुदूर क्षेत्रों में भी बिजली पहुंचाई है, क्या उसी प्रकार से हम, सौर ऊर्जा आधारित, पवन ऊर्जा आधारित, गोबर से उत्पन्न ऊर्जा का स्वराज स्थापित कर सकते हैं। बेशक इसमें सरकारों के बहुत प्रयास हुए हैं और हमें बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, परंतु इसमें हम सरकारों के प्रयास के आधार पर कुछ चीजें कर सकते हैं। सरकारी योजनाओं में अनुदान की ज्यादा चर्चा होती है। बिजली पर अनुदान देने पर सरकार द्वारा भारी खर्च किया जाता है। हमेशा चर्चा में आता है और यह कहा जाता है कि भारी अनुदान दिया गया, परन्तु उसे कहीं और से खरीदा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय सतत विकास संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की ऊर्जा सब्सिडी वर्ष 2023 में 3.2 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। क्यों न हम परिवार स्तर पर और गांव स्तर पर बिजली का उत्पादन करके उसके वितरण का विकेंद्रीकरण करें। बिजली के अनुदान को उस परिवार को दे दिया जाए जिससे उसकी आजीविका में बढ़ोतरी होगी। इससे ऊर्जा के लिए प्राकृतिक संसाधनों – जैसे सूर्य का प्रकाश, वायु, पानी और तो और खनन से निकला हुआ कोयला और वे सारे संसाधन जो कहीं न कहीं सुदूर क्षेत्रों में उपलब्ध रहे हों, से उनका जुड़ाव बना रहेगा। चाहे किसी बांध पर बिजली उत्पादन हो रहा हो, किसी इलाके में पहाड़ों पर पवन ऊर्जा बन रही हो या चाहे सुदूर क्षेत्रों की पड़त भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए गए हों, उनके साथ जन जुड़ाव जरूरी है। क्यों न ऊर्जा और प्रकाश के स्वराज को प्रकृति के संरक्षकोंं तक पहुंचाएं?
ऊर्जा का यह स्वराज हमें कई मायने में मदद कर सकता है, चाहे गोबर गैस से बनने वाली ऊर्जा हो। हम उसके स्वरूपों को खोज करके, निकाल करके कैसे उसको आगे बढ़ा सकते हैं वह भी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। हम उसकी मदद से पर्यावरण की सुरक्षा, पर्यावरण का संरक्षण, पर्यावरण की सततता को बचाए रख सकते हैं। साथ ही समानता मूलक, समता मूलक समाज बना सकते हैं। आग्रह केवल मात्र सरकारों से ही नही, आग्रह समाज से भी है और हर परिवार से भी है कि वह उस परिस्थिति को समझें और उसका आकलन करें। बाजार भी यह महसूस करे कि किस प्रकार से ऊर्जा हम मूल जरूरतमंद को आसानी से उपलब्ध करवाएं। बड़े व्यापारी सौर ऊर्जा उत्पादन लगे हुए हैं। उनसे भी आग्रह है कि वे परिवारों को संसाधन उपलब्ध करवा कर सशक्त बनाएं और हर घर तक प्रकाश फैलाने के सपने को साकार बनाएं।
— जयेश जोशी